Tuesday, April 30, 2024
HomeIndian Newsआखिर क्या होता है EVM में NOTA का मतलब? और यह कितना...

आखिर क्या होता है EVM में NOTA का मतलब? और यह कितना दमदार है?

आज हम आपको EVM में NOTA का महत्व बताने जा रहे हैं! बता दे कि आने वाले समय में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं,इसी बीच मतदाताओं को अपने मत का मतलब समझना बहुत जरूरी है, इसलिए आज हम आपके लिए एक महत्वपूर्ण जानकारी लेकर सामने आया है और वह है NONE OF THE ABOVE यानी NOTA का बटन, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में नोटा का बटन बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है! आपको बता दे कि सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद साल 2013 में वोटरों को None of the Above यानी NOTA का विकल्प दिया गया। मकसद यह था कि वोटरों को अगर एक भी उम्मीदवार पसंद न हो, उन्हें लगे कि ईमानदारी सहित दूसरे पैमानों पर कोई भी उनके हिसाब से सही नहीं है, तो वे NOTA का विकल्प चुन सकते हैं। 2013 से हुए विधानसभा और लोकसभा चुनावों में NOTA के खाते में काफी वोट गए। कुछ चुनाव क्षेत्रों में तो NOTA वोट रनर-अप कैंडिडेट के बाद तीसरे नंबर पर रहे और कुछ दलों को मिले कुल वोटों से भी अधिक रहे। बता दें कि इलेक्शन कमिशन ने वोटरों को NOTA विकल्प देने का फैसला अक्टूबर 2013 में किया था। इससे पहले वोटरों के पास 49-O फॉर्म भरकर किसी को वोट न देने का विकल्प था। वोट CPI, JDS, SAD जैसे 21 दलों को मिले वोटों से अधिक थे। 44 सीटों पर 2014 लोकसभा चुनाव में NOTA को मिले वोट दूसरे नंबर के प्रत्याशी के ठीक बाद रहे। छत्तीसगढ़ में 5 और कर्नाटक में 4 सीटों पर दूसरे नंबर के प्रत्याशी के ठीक बाद NOTA वोट रहे। तमिलनाडु, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, मेघालय, दादरा नगर हवेली और दमन दीव में 1-1 सीट पर ऐसा हाल रहा।दिल्ली, छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान और मध्य प्रदेश के 2013 असेंबली इलेक्शन में NOTA विकल्प मिला। बिहार की गोपालगंज सीट पर 2019 के चुनाव में सबसे ज्यादा थे। यानी आप इन आंकड़ों से समझ ही गए होंगे कि नोटा बटन भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है!बता दे कि सितंबर 2015 में चुनाव आयोग ने NOTA के लिए EVM में स्पेशल सिंबल बना दिया।

यह विकल्प देने के पीछे एक बड़ा मकसद पार्टियों पर साफ-सुथरे प्रत्याशी उतारने का दबाव बनाना था। दूसरा बड़ा मकसद था, अधिक से अधिक वोटरों को मतदान के लिए प्रेरित करना। इसी के साथ वोटर टर्नआउट कुछ बढ़ा, लेकिन इसमें NOTA का कोई बड़ा रोल सामने नहीं आया। बता दें कि साफ-सुथरे प्रत्याशी उतारने का मकसद तो बिल्कुल भी पूरा नहीं हो सका है। लेकिन हाँ, NOTA वोटों से विक्ट्री मार्जिन पर असर जरूर पड़ता रहा है। 2013 में 5 राज्यों के चुनावों में 16,82,024 वोटरों ने NOTA विकल्प चुना था। 2014 लोकसभा चुनाव में करीब 60 लाख वोटरों ने यानी (1.08%) ने NOTA का बटन दबाया था, NOTA के वोट CPI, JDS, SAD जैसे 21 दलों को मिले वोटों से अधिक थे। 44 सीटों पर 2014 लोकसभा चुनाव में NOTA को मिले वोट दूसरे नंबर के प्रत्याशी के ठीक बाद रहे। छत्तीसगढ़ में 5 और कर्नाटक में 4 सीटों पर दूसरे नंबर के प्रत्याशी के ठीक बाद NOTA वोट रहे। तमिलनाडु, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, मेघालय, दादरा नगर हवेली और दमन दीव में 1-1 सीट पर ऐसा हाल रहा।

छत्तीसगढ़ के बस्तर में कुल पड़े वोटों में से सबसे ज्यादा 5.03% वोट NOTA को मिले। 17 राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों में NOTA वोटों की संख्या लोकसभा चुनाव में इसके राष्ट्रीय औसत से ज्यादा रही। बता दें कि लोकसभा चुनावों में NOTA के खाते में काफी वोट गए। कुछ चुनाव क्षेत्रों में तो NOTA वोट रनर-अप कैंडिडेट के बाद तीसरे नंबर पर रहे और कुछ दलों को मिले कुल वोटों से भी अधिक रहे। बता दें कि इलेक्शन कमिशन ने वोटरों को NOTA विकल्प देने का फैसला अक्टूबर 2013 में किया था। यह विकल्प देने के पीछे एक बड़ा मकसद पार्टियों पर साफ-सुथरे प्रत्याशी उतारने का दबाव बनाना था। दूसरा बड़ा मकसद था, अधिक से अधिक वोटरों को मतदान के लिए प्रेरित करना। इसी के साथ वोटर टर्नआउट कुछ बढ़ा, लेकिन इसमें NOTA का कोई बड़ा रोल सामने नहीं आया।इससे पहले वोटरों के पास 49-O फॉर्म भरकर किसी को वोट न देने का विकल्प था। बता दें कि मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और कर्नाटक में 34 सीटों पर BJP, कांग्रेस के बाद NOTA वोट रहे। 17 सीटों पर गुजरात में NOTA वोट दूसरे नंबर के प्रत्याशी के ठीक बाद रहे। 65 लाख से ज्यादा वोट 1.06% वोट 2019 लोकसभा चुनाव में NOTA को मिले थे। 51,600 NOTA वोट बिहार की गोपालगंज सीट पर 2019 के चुनाव में सबसे ज्यादा थे। यानी आप इन आंकड़ों से समझ ही गए होंगे कि नोटा बटन भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है!

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments