यह सवाल उठना लाजिमी है कि अखिलेश यादव कन्नौज सीट से चुनाव क्यों नहीं लड़ रहे! लोकसभा चुनाव 2024 का बिगुल बज चुका है। राजनीतिक दल चुनावी रणनीति के साथ ही मुद्दों पर बात कर रहे हैं। वहीं, यूपी की सियासत की बात करें तो यहां भी प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारा जा रहा है। ऐसे में सोमवार को समाजवादी पार्टी की तरफ से दो लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए गए हैं। इसमें एक बलिया की सीट है तो दूसरी कन्नौज लोकसभा सीट है, जहां पर 1998 से 2014 तक सपा का कब्जा रहा है। सपा के इस ऐलान के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि अखिलेश यादव लोकसभा चुनाव में बतौर प्रत्याशी नहीं उतरेंगे। करीब 25 साल के राजनीतिक सफर में अखिलेश यादव चार बार लोकसभा और एक बार विधानसभा का चुनाव लड़े। यहीं नहीं 100 प्रतिशत के स्ट्राइक रेट से उन्होंने सभी चुनाव में जीत हासिल की है।सपा मुखिया अखिलेश यादव के कन्नौज से चुनाव नहीं लड़ने पर भारतीय जनता पार्टी हमलावर हो गई है। हज समिति के अध्यक्ष मोहसिन रजा ने कहा कि आज समाजवादी पार्टी की एक और चुनावी लिस्ट आई है, जिसमें पूरी तरह से सपा मुखिया ने हार को स्वीकार करते हुए कन्नौज में अपने परिवार के किसी सदस्य (तेज प्रताप यादव) को टिकट दे दिया है। मोहसिन रजा ने कहा कि अखिलेश को खुद हार का डर सताने लगा है, इसलिए सपा मुखिया चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। वहीं, इंडिया गठबंधन का नेतृत्व कर रही कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि सपा और कांग्रेस का एक ही जैसा हाल है। हार के डर से ही उन्होंने भी अमेठी और रायबरेली की सीट छोड़ दी है।
करीब 25 साल के राजनीतिक सफर में अखिलेश यादव दूसरी बार लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे। वर्ष 2000 में उन्होंने कन्नौज लोकसभा उपचुनाव से राजनीति की शुरुआत की थी। इसके बाद 2004 और 2009 में यहां से चुनाव लड़कर जीत दर्ज की। चूंकि, 2012 से 2017 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, इसलिए 2014 में लोकसभा चुनाव नहीं लड़े। हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में आजमगढ़ से उतरकर जीत हासिल की थी। यही नहीं जीत का अंतर भी काफी ज्यादा था। यहां अखिलेश ने भाजपा प्रत्याशी दिनेश लाल यादव निरहुआ को 2.59 लाख वोटों से शिकस्त दी थी। अखिलेश को आजमगढ़ में 6 लाख 21 हजार 578 वोट मिले थे, लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने यूपी की करहल विधानसभा सीट से चुनाव लड़कर जीत दर्ज की।
अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के सबसे युवा मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उन्होंने 2012- 2017 तक यूपी की सत्ता संभाली। सीएम की कुर्सी संभालने से पहले वो लगातार तीन बार सांसद भी रह चुके हैं। समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के पुत्र अखिलेश ने 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी का नेतृत्व किया। उनकी पार्टी को राज्य में स्पष्ट बहुमत मिलने के बाद 15 मार्च 2012 को उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की। बता दें कि 1998 से 2014 तक सपा का कब्जा रहा है। सपा के इस ऐलान के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि अखिलेश यादव लोकसभा चुनाव में बतौर प्रत्याशी नहीं उतरेंगे। करीब 25 साल के राजनीतिक सफर में अखिलेश यादव चार बार लोकसभा और एक बार विधानसभा का चुनाव लड़े। यहीं नहीं 100 प्रतिशत के स्ट्राइक रेट से उन्होंने सभी चुनाव में जीत हासिल की है।सपा मुखिया अखिलेश यादव के कन्नौज से चुनाव नहीं लड़ने पर भारतीय जनता पार्टी हमलावर हो गई है। हज समिति के अध्यक्ष मोहसिन रजा ने कहा कि आज समाजवादी पार्टी की एक और चुनावी लिस्ट आई है 2019 में आजमगढ़ से लोकसभा चुनाव लड़कर जीत हासिल की। 2022 विधानसभा चुनाव में करहल सीट से मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री प्रो.सत्यपाल सिंह बघेल को हराकर पहली बार विधायक बने और आजमगढ़ लोकसभा सदस्य से इस्तीफा दे दिया था।
2019 के लोकसभा चुनाव में कन्नौज सीट पर बहुत ही करीबी मुकाबला हुआ था। 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा का गठबंधन था, इस चुनाव में डिंपल यादव को 5,50,734 वोट मिले थे, जबकि उनके सामने चुनाव लड़े बीजेपी के सुब्रत पाठक को 5,63,087 वोट मिले थे। 2014 लोकसभा चुनाव में भी मुकाबला बेहद करीबी रहा था। अखिलेश को आजमगढ़ में 6 लाख 21 हजार 578 वोट मिले थे, लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने यूपी की करहल विधानसभा सीट से चुनाव लड़कर जीत दर्ज की।तब बीजेपी के सुब्रत पाठक को 4,69,257 वोट मिले थे, जबकि सपा की डिंपल यादव को 4,89,164 वोट हासिल हुए थे। डिंपल यादव यह चुनाव करीब बीस हजार वोटों से जीत गई थीं। इस चुनाव में बीएसपी के प्रत्याशी निर्मल तिवारी को 1,27,785 वोट हासिल हुए थे।