Tuesday, May 21, 2024
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क्या विटामिन की गोलियां मौत की वजह बन सकती हैं?

वर्तमान में विटामिन की गोलियां भी मौत की वजह बन सकती है! कहते हैं अति हर चीज की बुरी होती है जैसा कि विटामिन के साथ है। आपके लिए विटामिन फायदेमंद तो है लेकिन,जरूरी चीजों की भी अधिकता नुकसान पहुंचा सकती है। पिछले साल मई में, ब्रिटेन के 89 वर्षीय डेविड मिचेनर की विटामिन डी की अधिक मात्रा लेने से मृत्यु हो गई थी। वह कम से कम नौ महीनों से बिना डॉक्टर के पर्चे के मिलने वाली विटामिन डी की गोलियां खा रहे थे। मिचेनर के शरीर में विटामिन डी का लेवल बहुत ज्यादा बढ़ गया था और उन्हें हाइपरकैल्सीमिया शरीर में कैल्शियम की बहुत अधिक मात्रा हो गई थी, जो दिल और किडनी को नुकसान पहुंचा सकती है। सरकार अब इस बात को सुनिश्चित करने के लिए कदम उठा रही है कि विटामिन डी जैसी उच्च खुराक वाली गोलियां दवाओं की तरह बेची जाएं, ताकि इन्हें गलत तरीके से न बेचा जाए और लोग इनका ओवरडोज ना कर लें। 2022 में, आगरा के रहने वाले 55 साल के एक व्यक्ति के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। उन्हें बार-बार उल्टी होना, भूख न लगना और चक्कर आने लगे। उन्हें इलाज के लिए दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल एसजीआरएच ले जाया गया। वहां पता चला कि वह एक हफ्ते की विटामिन डी की दवाई को सिर्फ एक महीने में खा चुके थे। डॉक्टर अतुल गोयल एसजीआरएच के इंटरनल मेडिसिन विभाग के सीनियर कंसल्टेंट के अनुसार उनके शरीर में कैल्शियम और क्रिएटिनिन का लेवल बहुत ज्यादा बढ़ गया था। उन्हें ठीक करने में करीब एक हफ्ता लग गया। इससे पता चलता है कि सिर्फ विटामिन डी ही नहीं, बल्कि जरूरत से ज्यादा आयरन, जिंक जैसी मिनरल्स और विटामिन ए, ई और के लेना भी नुकसानदायक हो सकता है। ब्रिटेन में भी इसी वजह से विटामिन डी की ओवरडोज से हुई मौत को गंभीरता से लिया गया और दवाओं के पैकेज पर सही मात्रा और सावधानी के बारे में जानकारी देने पर जोर दिया गया।

अभी तक भारत में विटामिन और मिनरल की गोलियों जिन्हें न्यूट्रास्यूटिकल्स कहा जाता है पर रूरी चेतावनियां नहीं दी जाती हैं। इनको दवाओं की तरह केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन नहीं बल्कि खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण रेगुलेट करता है। सवाल यह है कि क्या अब वक्त आ गया है कि इन विटामिन और मिनरल की गोलियों को दवाओं वाले विभाग के अंतर्गत लाया जाए?स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी, जो इस मुद्दे पर गौर करने वाली सरकारी समिति का हिस्सा हैं, उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि निर्धारित मात्रा से ज्यादा विटामिन और मिनरल वाले न्यूट्रास्यूटिकल्स को दवाओं की तरह माना जाना चाहिए ताकि उनकी गुणवत्ता पर सख्ती से नियंत्रण रखा जा सके। उन्होंने यह भी कहा कि न्यूट्रास्यूटिकल्स के गलत इस्तेमाल या ज्यादा इस्तेमाल से सेहत को गंभीर नुकसान हो सकता है। इसके अलावा, इनको दवाओं की तरह कीमतों को नियंत्रित करने पर भी विचार किया जा रहा है. समिति ने हाल ही में अपनी पहली बैठक की है।

विटामिन और मिनरल्स वाली गोलियों को दवा की तरह माना जाए तो उन पर ज्यादा सख्ती से नियंत्रण रखा जा सकेगा। अगर इनको दवा माना जाए तो इन्हें बनाने वाली कंपनियों को दवा बनाने वाली कंपनियों की तरह ही सख्त नियमों का पालन करना होगा। उन्हें नई विटामिन या मिनरल वाली गोली को बाजार में लाने से पहले ये साबित करना होगा कि वो सुरक्षित है और फायदेमंद है। साथ ही अगर वो दवा बनाने के अच्छे तरीकों (GMP) का पालन नहीं करती हैं तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई भी हो सकती है। हालांकि, सूत्रों का कहना है कि भारत में ज़्यादातर विटामिन और मिनरल वाली गोलियां दवा बनाने वाली कंपनियां ही बनाती हैं, इसलिए ये कम ही होता है कि वो दवा बनाने के अच्छे तरीकों का पालन ना करें। असल में सबसे बड़ी समस्या है इनको गलत तरीके से बेचना, पैकेजिंग पर गलत जानकारी देना और बहुत ज्यादा कीमत पर बेचना। दवा और कॉस्मेटिक्स अधिनियम, 1940 Drugs and Cosmetics Act, 1940 में इन सब के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का प्रावधान है।

फार्माकोलॉजी विभाग के पूर्व प्रोफेसर और प्रमुख थे, का कहना है कि न्यूट्रास्यूटिकल्स को खाने की चीजों के साथ पोषण बढ़ाने के लिए भी लिया जा सकता है और इलाज के लिए भी। उदाहरण के तौर पर, विटामिन सी की छोटी मात्रा शरीर को जरूरी पोषण देने के लिए ली जाती है, जबकि बड़ी मात्रा में विटामिन सी का इस्तेमाल स्कर्वी (एक बीमारी जिससे मसूड़ों से खून आना, दांत ढीले होना आदि होता है) के इलाज के लिए किया जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर किसी न्यूट्रास्यूटिकल का इस्तेमाल इलाज के लिए किया जा रहा है तो उसे दवा माना जाना चाहिए और उसकी बनावट और बिक्री को केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन रेगुलेट करे।

विटामिन और मिनरल की गोलियों को लेकर साल 2021 में जाने माने फार्माकोलॉजिस्ट डॉ प्रोतीश राणा और डॉ वंदना रॉय ने एक अहम सुझाव दिया था। उनका कहना था कि पोषण विशेषज्ञों, फार्माकोलॉजिस्टों और डॉक्टरों के साथ मिलकर विटामिन और मिनरल की गोलियों के लिए “तथ्यों पर आधारित दिशा निर्देश” बनाने चाहिए। उन्होंने इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में लिखा था कि “ये दिशा-निर्देश भारतीय लोगों की खाने की आदतों को ध्यान में रखकर बनाए जाएं और साथ ही ये भी स्पष्ट करें कि अगर कोई पहले से संतुलित आहार ले रहा है तो फिर उसे इन गोलियों की रूरत है या नहीं। सरकार का न्यूट्रास्यूटिकल्स के नियमों को फिर से जांचने का फैसला इसी दिशा में एक सकारात्मक कदम है!

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