Monday, November 4, 2024
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क्या अरुणाचल प्रदेश में खुराफात करना चाहता है चीन?

वर्तमान में चीन अरुणाचल प्रदेश में खुराफात करना चाहता है! वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पूर्वी लद्दाख सेक्टर में चीन के साथ पिछले करीब साढ़े 4 साल से जारी तनाव अभी कम नहीं हुआ है कि ड्रैगन ने अब अरुणाचल के पास खुराफात करने लगा है। उसने अरुणाचल प्रदेश से सेट एलएसी के पास एक नया हेलीपोर्ट बनाया है। सैटेलाइट तस्वीरों से इस बात का पता चला है। चीन के इस कदम से दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ सकता है। चीन पहले से ही एलएसी से सटे इलाकों पर सैकड़ों मॉडर्न गांव बसा चुका है, जिसे जियाओकांग कहा जाता है। इन गांवों को उसने ऐसे बसाया है ताकि उनका सैन्य इस्तेमाल भी किया जा सके। इन खुराफातों की वजह से चीन की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं। यह हेलीपोर्ट, ‘फिशटेल’ क्षेत्र में स्थित है और चीन को इस दूरदराज के इलाके में सैन्य संसाधनों को तेजी से पहुंचाने की क्षमता देने वाला है। यह हेलीपोर्ट तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के निंगची प्रान्त में गोंग्रिगाबू क्यू नदी के किनारे स्थित है। सैटेलाइट तस्वीरें दिखाती हैं कि दिसंबर 2023 की शुरुआत में इस जगह पर कोई निर्माण कार्य नहीं हो रहा था, लेकिन दिसंबर के अंत तक निर्माण कार्य शुरू हो गया। सितंबर 2024 की तस्वीरों से पता चलता है कि हेलीपोर्ट अब लगभग बनकर तैयार है।

रिपोर्ट में एक्सपर्ट्स के हवाले से कहा है यह नया हेलीपोर्ट पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को खुफिया जानकारी जुटाने, निगरानी और टोही गतिविधियों को तेज करने की अनुमति देगा। यह घने जंगलों वाले क्षेत्र में रसद संबंधी चुनौतियों को कम करता है, जहां ऊबड़-खाबड़ पहाड़ सैन्य आवाजाही को मुश्किल बनाते हैं। हेलीपोर्ट के निर्माण से ‘दूरदराज के क्षेत्रों में सैनिकों की तेजी से तैनाती, गश्त को मजबूत करना और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण, दूरदराज के स्थानों में चीन की समग्र सैन्य उपस्थिति को बढ़ाना’ संभव हो गया है।

इस हेलीपोर्ट में कम से कम तीन हैंगर, हेलीकॉप्टरों के लिए एक बड़ा एप्रन क्षेत्र, एक हवाई यातायात नियंत्रण सुविधा और हेलीपोर्ट से जुड़ीं इमारतें और संरचनाएं हैं। अंग्रेजी वेबसाइट ने सैन्य सूत्रों के हवाले से बताया है कि यह सुविधा नागरिकों को दूरदराज के क्षेत्र में ले जाने के लिए दोहरे इस्तेमाल के काम को भी पूरा कर सकती है। सैन्य सूत्रों का यह भी कहना है कि यह किसी भी आपात स्थिति के दौरान सैनिकों के तेजी से निर्माण को सक्षम बनाता है। अरुणाचल प्रदेश के फिशटेल क्षेत्र को ये नाम वहां एलएसी के विशिष्ट आकार की वजह से मिला है। इसमें फिशटेल 1 और फिशटेल 2 शामिल हैं। फिशटेल 1 दिबांग घाटी में स्थित है, जबकि फिशटेल 2 आंशिक रूप से अरुणाचल के अंजॉ जिले में है। दोनों क्षेत्रों को ‘संवेदनशील’ माना जाता है। इस क्षेत्र में चीन और भारत की वास्तविक नियंत्रण रेखा के बारे में अलग-अलग धारणाएं हैं यानी भारत के हिसाब से एलएसी कहीं और है और चीन के हिसाब से कहीं और।

अंग्रेजी वेबसाइट ने चीन के हेलीपोर्ट निर्माण को लेकर भारतीय सेना की पूर्वी कमान का नेतृत्व कर चुके लेफ्टिनेंट जनरल प्रवीण बख्शी से बातचीत की है। उन्होंने बताया, ‘यह हेलीपोर्ट उन प्रमुख क्षेत्रों के लिए खतरा होगा जिन्हें यहां ‘संवेदनशील’ माना जाता है।’ इसका मतलब ये है कि इस बात का खतरा बढ़ गया है कि चीन इस हेलीपोर्ट का इस्तेमाल करके ‘संवेदनशील’ क्षेत्रों में एलएसी की स्थिति में एकतरफा बदलाव की कोशिश कर सकता है।

रिपोर्ट में बताया गया है चीन जिस हेलीपोर्ट का निर्माण कर रहा है उसका रनवे 600 मीटर लंबा है। इसका इस्तेमाल हेलीकॉप्टरों के रोलिंग टेक-ऑफ के लिए किया जा सकता है। यह एक ऐसी तकनीक है जिसका इस्तेमाल उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में किया जाता है जहां हेलीकॉप्टरों के उपयोग के लिए कम शक्ति उपलब्ध होती है। इस रनवे के बावजूद, नया हेलीपोर्ट एक ऐसे क्षेत्र में स्थित है जहां ऊंचाई तिब्बती पठार के बड़े हिस्से की तुलना में काफी कम है। इससे हेलीकॉप्टर संचालन को फायदा होता है।

चीन ऐसे समय में हेलीपोर्ट बना रहा है जब वह पहले से ही एलएसी से सटे इलाकों में सैकड़ों नए गांव बसा रहा है, जिसका दोहरा इस्तेमाल किया जा सकता है। ये गांव एलएसी के विवादित क्षेत्रों में चीन द्वारा अपने दावों पर जोर देने का एक हथियार हैं। इसके जरिए वह एलएसी पर जमीनी हकीकत को बदलने की कोशिश कर सकता है।

करीब साढ़े 4 साल पहले पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में हुई हिंसक सैन्य झड़प के पहले से चीन रणनीति के तहत एलएसी के पास सैकड़ों आधुनिक गांव बसा रहा है। लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक हर दर्रे के पास उसने गांव बसाए हैं। इन गांवों को पक्के घर, बिजली, पानी, इंटरनेट, सड़क और तमाम आधुनिक सुविधाओं से लैस किया है। इतना ही नहीं, वह इन गांवों में रहने के लिए लोगों को पैसे भी दे रहा है। इन गांवों को ऐसे बनाया गया है कि उनका सैन्य इस्तेमाल हो सके यानी ये गांव अपने आप में मिलिट्री इन्फ्रास्ट्रक्चर हैं।

 

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