Saturday, October 5, 2024
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चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और प्रधानमंत्री का क्या है विवाद?

हाल ही में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और प्रधानमंत्री का एक विवाद सामने आया है! बता दे कि 15 जनवरी, 1980 को सुप्रीम कोर्ट के एक जज जस्टिस पीएन भगवती ने इंदिरा गांधी को पत्र लिखा। इस चिट्ठी को लेकर उस वक्त न्यायपालिका से लेकर सियासी गलियारों में जमकर हंगामा मचा था। यहां तक कि उस चिट्ठी के बाद जजों के लिए कोड ऑफ कंडक्ट लागू किए जाने को लेकर बात उठी। जस्टिस भगवती का यह लेटर 1200 शब्दों का था, जिसकी वजह से कहा जाता है कि इंदिरा गांधी सरकार भी विचलित हो गई थी। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के घर जाकर गणेश पूजा करने को लेकर विवाद शुरू हो गया है। कुछ लोग इसे सही ठहरा रहे हैं तो कुछ इसे गलत। जस्टिस पीएन भगवती ने अपनी चिट्ठी में कुछ इस तरह से लिखा था- क्या मैं चुनावों में आपकी शानदार जीत और भारत के प्रधानमंत्री के रूप में आपकी विजयी वापसी पर हार्दिक बधाई दे सकता हूं? यह एक बेहद उल्लेखनीय उपलब्धि है जिस पर आप, आपके मित्र और शुभचिंतक जायज रूप से गर्व कर सकते हैं। भारत जैसे देश का प्रधानमंत्री बनना बड़े सम्मान की बात है। इस चिट्ठी के आते ही न्यायपालिका और सियासत से जुड़े लोगों ने जमकर हंगामा किया। सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट अनिल कुमार सिंह श्रीनेत के अनुसार, 22 मार्च, 1980 को उस वक्त सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ जज रहे वीडी तुलजापुरकर ने कहा था कि अगर कोई जज किसी राजनीतिक नेता को उसकी राजनीतिक जीत पर गुलदस्ते या बधाई पत्र भेजना शुरू कर दे और उच्च पद ग्रहण करने पर तारीफ के पुल बांधे तो न्यायपालिका में लोगों का विश्वास हिल जाएगा।

जस्टिस प्रफुल्लचंद्र नटवरलाल भगवती की 1,200 शब्दों की एक चिट्ठी से उस वक्त इंदिरा गांधी भी अपनी चुनावी जीत का आनंद नहीं उठा पाई थीं। इस लेटर के सामने आने पर वह बेहद विचलित हो गई थीं। उस वक्त इस पत्र को लेकर सुप्रीम कोर्ट के ज्यादातर एडवोकेट नाराज हो गए थे। 2 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की बैठक बुलाई गई। उस वक्त यह तय हुआ कि इसे जितना अधिक उछाला जाएगा, न्यायपालिका को उतना ही अधिक नुकसान होगा। जस्टिस भगवती के सहयोगी रहे जस्टिस वीडी तुलजापुरकर ने सीधे तौर पर नाम लिए बिना इस बात की जमकर आलोचना की। भारतीय विधि संस्थान के एक समारोह में उन्होंने कहा कि हाल ही में आई एक खबर से उन्हें और उनके सहयोगियों को गंभीर पीड़ा हुई है। यह बहुत परेशान करने वाली बात है, जो न्यायपालिका की छवि को अंदर से नुकसान पहुंचा रही है और इसकी निंदा की जानी चाहिए।

इससे पहले भी इंदिरा गांधी ने अपने कार्यकाल के दौरान 1973 में जस्टिस एएन रे को पदोन्नत कर CJI बना दिया था। उन्होंने जनवरी 1977 में जब एमएच बेग को पदोन्नत किया था। सुप्रीम कोर्ट के एक वकील ने तब कहा था कि राजनीतिकरण का कैंसर नौकरशाही से लेकर न्यायपालिका तक फैल रहा है। अगर हम सावधान नहीं रहे, तो संविधान द्वारा मानी जाने वाली हमारी सरकार प्रणाली मान्यता से परे बदल जाएगी। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के बेटे अभिनव चंद्रचूड़ ने अपनी किताब ‘सुप्रीम व्हिस्पर्स’ में बताया है कि तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने जस्टिस रे की नियुक्ति, शीर्ष अदालत के तीन वरिष्ठ जजों जस्टिस जयशंकर मणिलाल शेलत, केएस हेगड़े और एएन ग्रोवर की अनदेखी कर की थी। इस घटना को न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमले के रूप में देखा गया था। अगर वरिष्ठता की परंपरा का पालन होता तो जस्टिस एएन रे कभी सीजेआई नहीं बना पाते क्योंकि जस्टिस ग्रोवर के रिटायर होने से एक माह पहले ही जनवरी 1977 में जस्टिस रे सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हो जाते। किताब के अनुसार, अपनी नियुक्ति के बारे में जस्टिस अजीत नाथ रे (AN Ray) ने कहा था, अगर मैं पद स्वीकार नहीं करता तो किसी और को ऑफर किया जाता है।

CJI बनने के बाद जस्टिस रे ने केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की समीक्षा के लिए एक खंडपीठ का गठन कर दिया था। इसे बाद में भंग करना पड़ा था। इतना ही नहीं, इंदिरा गांधी द्वारा लगाए इमरजेंसी के समय संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 22 के तहत मिले नागरिक अधिकारों (व्यक्तिगत स्वतंत्रता व अदालत में अपील का अधिकार) को निलंबित करने का फैसला भी जस्टिस रे की खंडपीठ ने ही किया था।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ के दिल्ली स्थित आवास पर आयोजित गणेश पूजा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को शामिल हुए। पीएम के सीजेआई के घर जाकर पूजा करने को लेकर सोशल मीडिया पर विवाद गहरा गया। विपक्ष ने इस मौके को जहां गलत करार दिया है, वहीं कुछ लोगों ने इसे सही ठहराया। जानते हैं जाने-माने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के गणेशोत्सव से कैसे अंग्रेजों को बंगाल विभाजन रोकना पड़ा था। यह भी जानेंगे कि सीजेआई के घर पीएम की पूजा का पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से क्या कनेक्शन हैं। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ इसी साल 10 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं। इस बीच उन्होंने कई अहम मामलों की सुनवाई भी की है। इसमें से महाराष्ट्र से जुड़ा एक मामला अभी सीजेआई के ही कोर्ट में है, जहां इसी साल चुनाव होने हैं। महाराष्ट्र में शिव सेना और एनसीपी में टूट के बाद बनी शिंदे सरकार और इसकी वैधता से जुड़ा मामला भी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।

इस विवाद पर वकीलों की एक संस्था ‘कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल अकाउंटिबिलिटी एंड रिफॉर्म्स यानी (सीजेएआर)’ ने भी कहा है कि न्यायपालिका पर संविधान की रक्षा करने और बिना किसी भय या पक्षपात के न्याय सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है। इसे कार्यपालिका से पूरी तरह से स्वतंत्र माना जाना चाहिए। शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट के नेता संजय राउत ने कहा कि गणपति उत्सव में लोग एक-दूसरे के घरों में जाते हैं। प्रधानमंत्री अब तक कितने घरों में गए हैं? उन्होने आरोप लगाया, हमारी शंका इतनी है कि संविधान के रखवाले इस तरह से राजनीतिक नेताओं से मिलते हैं। महाराष्ट्र सरकार की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है। उसमें एक पार्टी प्रधानमंत्री हैं, क्या चीफ जस्टिस न्याय कर पाएंगे। हमें तारीख पर तारीख मिलती है। उन्हें इस केस से खुद को अलग कर लेना चाहिए।

बीजेपी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट मुख्य न्यायाधीश होते हुए केजी बालाकृष्णन तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इफ़्तार में शामिल हुए थे। बीजेपी नेता संबित पात्रा ने प्रेस कांफ्रेंस कर विपक्ष पर यह सवाल उठाया कि देश के प्रधानमंत्री अगर सीजेआई से मिलते हैं तो आपको आपत्ति होती है? क्या लोकतंत्र के दो स्तंभ को आपस में दुश्मनी रखनी चाहिए, हाथ नहीं मिलाना चाहिए? पात्रा ने भी दावा किया कि मनमोहन सिंह के इफ्तार में सीजेआई शामिल होते थे। उन्होंने इसी मौके पर राहुल गांधी की विदेश यात्रा पर भी सवाल खड़े किए।

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