Saturday, October 5, 2024
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जब यूपी में एंबुलेंस में हुई छेड़छाड़ की वारदात!

एक ऐसी घटना सामने आई है जहां यूपी में एंबुलेंस में छेड़छाड़ की वारदात हुई! इंसान की शक्ल-सूरत वाला कोई किस हद तक हैवान हो सकता है? इतना भी कि कोई शख्स ऑक्सिजन सपोर्ट पर हो और एंबुलेंस में उसकी पत्नी का यौन उत्पीड़न करने लगे? जवाब है हां- इतना भी। योगी आदित्यनाथ की सरकार में अपराध और अपराधियों के लिए निर्मम हो चुके उत्तर प्रदेश का यह वाकया आपको अंदर से हिला देगा। प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सिद्धार्थनगर जा रहे एक एम्बुलेंस में सवार महिला के साथ जो हुआ, उस पर आसानी से यकीन नहीं होता। पीड़िता महिला की आपबीती आपको यह सोचने को मजबूक कर देगी कि क्या कोई वासना का आगोश में आकर इस हद तक अमानवीय हरकत कर सकता है! सोचिए, एंबुलेंस में महिला के साथ ड्राइवर और उसके साथी ने ही छेड़छाड़ की। इतना ही नहीं, विरोध किया तो हैवानों ने उसके बीमार पति से ऑक्सीजन मास्क हटाकर उन्हें एम्बुलेंस से बाहर फेंक दिया। महिला के पति इस दुनिया में नहीं रहे। घटना 29 अगस्त की है। पीड़िता रचना अपने बीमार पति को लेकर लखनऊ से सिद्धार्थनगर जा रही थी। रास्ते में एम्बुलेंस चालक सूरज तिवारी और उसके साथी ने रचना के साथ छेड़छाड़ शुरू कर दी। रचना ने बताया, ‘मेरे पति रक्षाबंधन के बाद बहुत बीमार पड़ गए थे।’ वे मुंबई में काम करते थे। उन्हें लिवर की बीमारी थी। मुंबई में डॉक्टरों को दिखाया लेकिन खून चढ़ाने के बाद भी उनकी हालत बिगड़ती गई। वे सिद्धार्थनगर वापस आ गए ताकि परिवार उनकी देखभाल कर सके।

रचना ने कहा, ‘स्थानीय अस्पताल उनका इलाज नहीं कर सका। उन्होंने हमें लखनऊ के केजीएमयू ट्रॉमा सेंटर रेफर कर दिया। यह एक बड़ा अस्पताल है, लेकिन यहां बहुत सारे मरीज भी हैं। उन्होंने हमें बताया कि उनके पास बिस्तर खाली नहीं है, इसलिए वे मेरे पति को भर्ती नहीं कर सकते।’ उन्होंने आगे बताया, ‘मैंने एक एम्बुलेंस किराए पर ली जो हमें 27 अगस्त की रात इंदिरानगर के अरवाली मार्ग स्थित एक निजी अस्पताल ले गई।’ यहां रचना को उस समस्या का सामना करना पड़ा जिससे कई भारतीय परिवार दोचार होते हैं। इलाज का खर्च इतना ज्यादा था कि उनके पास जो थोड़ी बहुत बचत थी वो भी खत्म हो गई।

रचना ने कहा, ‘मेरे पति को दो रात के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था और मुझे 2 लाख रुपये का बिल थमा दिया गया।’ मेरे पास इतने पैसे नहीं थे, इसलिए मेरे परिवार ने इलाज का खर्च उठाने के लिए घर की जमीन गिरवी रख दी। लेकिन उनकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। वे अब बिना ऑक्सीजन मास्क के सांस नहीं ले पा रहे थे। इलाज का खर्च इतना ज्यादा था कि मैं डॉक्टर से डिस्चार्ज करने के लिए मजबूर हो गई। मैंने मदद के लिए अहमदाबाद में काम करने वाले अपने भाई को बुलाया। हमने सिद्धार्थनगर वापस जाने का फैसला किया। किसी ने हमें एंबुलेंस का नंबर दिया। बात हुई तो ड्राइवर (सूरज तिवारी) हमें वहां ले जाने के लिए तैयार हो गया।

उन्होंने बताया, ’29 अगस्त को शाम 6:30 बजे हम इंदिरानगर अस्पताल से निकले। मेरे भाई तब तक लखनऊ आ चुके थे। मैं और मेरा भाई स्ट्रेचर पर लेटे मेरे पति के बगल वाली सीट पर बैठे थे। मेरे पति का ऑक्सीजन सिलेंडर से जुड़ा फेस मास्क था। हम एक पेट्रोल पंप पर रुके और फिर उस हाईवे पर चल पड़े जो हमें सिद्धार्थनगर ले जाएगा। अयोध्या बाईपास पहुंचने के बाद ड्राइवर ने मुझे आगे बैठने का अनुरोध किया। उसने कहा कि रात में पुलिस एम्बुलेंस को रोक सकती है। महिला को बैठे हुए देखेंगे तो रोकेंगे नहीं।’ उन्होंने कहा, ‘मैंने उसकी बात अनसुनी कर दी, लेकिन वह जिद करता रहा। कुछ देर बाद मैं मान गई। अगर इससे हमें सड़क पर समय बचाने में मदद मिलती है, तो क्यों नहीं। लेकिन सूरज तिवारी को कोई जल्दी नहीं थी। उसने अयोध्या के एक ढाबे के पास एम्बुलेंस रोक दी।’

एम्बुलेंस चालक और उसका साथी खाना खाना चाहते थे। लेकिन उन्होंने सिर्फ खाना नहीं खाया। दोनों ने शराब भी पी जबकि एक गंभीर मरीज अभी भी अपने गंतव्य से आधे रास्ते पर था। रचना कहती हैं, ‘जब सूरज तिवारी और उसका साथी एम्बुलेंस में लौटे तो उनसे शराब की गंध आ रही थी। इससे मैं घबरा गई। लेकिन वे दोनों तरफ से अंदर घुसे और मैं उनके बीच फंस गई। सूरज तिवारी ने गाड़ी स्टार्ट की। हम फिर से अपने रास्ते पर थे। देर हो चुकी थी और ट्रैफिक कम था।’

महिला ड्राइवर और कंडक्टर की हैवानियत बताते हुए भावुक हो गईं। उन्होंने कहा, ‘दोनों आदमी मेरे करीब आ गए थे और मैं उनकी सांसों से आ रही शराब की गंध से घुटन महसूस कर रही थी। और फिर मैं जम गई। उनके हाथ मेरी पीठ पर थे। जब मैंने छुआ तो मैंने खुद को पीछे खींच लिया और उन्हें दूर धकेल दिया, लेकिन वे बहुत तगड़े थे। मैंने विरोध किया तो वे और आक्रामक हो गए। मैंने खुद को छुड़ाने की कोशिश की लेकिन कर नहीं पाई। मैं चिल्लाई लेकिन कांच की खिड़कियों के कारण मेरी आवाज ड्राइवर के केबिन तक नहीं पहुंच पाई। फिर भी मेरे भाई और पति को एहसास हुआ कि मैं मुसीबत में हूं। मेरे भाई ने मदद के लिए चिल्लाया और ड्राइवर को रोकने के लिए केबिन की दीवार पर पीटा।’

रचना के मुताबिक, एंबुलेंस ड्राइवर और उसके साथी ने उसके पर्स से 10,000 रुपये, उसका मंगलसूत्र और उसके पहने हुए पायल छीन लिए और उसे और उसके भाई को एम्बुलेंस से बाहर धकेल दिया और गाड़ी भगा ले गए। वो कहती हैं, ‘मेरे भाई ने 112 और 108 पर डायल किया। पुलिस और एम्बुलेंस एक साथ मौके पर पहुंचे। पुलिस ने हमारा बयान लिया और हमें सलाह दी कि हम मेरे पति को अस्पताल में भर्ती कराएं, फिर एफआईर दर्ज कराने के लिए वापस आएं। 108 की एम्बुलेंस हमें बस्ती के जिला अस्पताल ले गई। मेरे पति की हालत बिगड़ गई थी। अस्पताल के अधिकारियों ने हमें उन्हें गोरखपुर मेडिकल कॉलेज ले जाने को कहा। लेकिन जब तक हम गोरखपुर पहुंचे, तब तक उनकी मौत हो चुकी थी।’

रचना कहती हैं, ‘मेरे पति का अंतिम संस्कार 1 सितंबर को किया गया। हम 3 सितंबर को प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए लखनऊ गए थे, लेकिन इस बार हमें बताया गया कि घटना बस्ती में हुई थी, और प्राथमिकी भी वहीं दर्ज की जाएगी। एक दूर का रिश्तेदार जो सरकार में काम करता है, उसने वरिष्ठ अधिकारियों से संपर्क किया और उनके निर्देश पर, अंततः 4 सितंबर को प्राथमिकी दर्ज की गई।’ उधर, मुख्य आरोपी सूरज तिवारी ने 12 सितंबर की शाम को लखनऊ जिला अदालत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।

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