Tuesday, May 21, 2024
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जब ईरान के राजा हिंदुस्तान से लेते थे टैक्स!

एक समय ऐसा भी था जब ईरान के राजा हिंदुस्तान से टैक्स लेते थे! ईरान में नक्शे-रूस्तम नाम की एक जगह है, जहां प्राचीन फारस के महान शासक डेरियस प्रथम की कब्र है। डेरियस को दारा के नाम से जाना जाता था। उसकी कब्र पर लिखा है-दारा के पास कितने देश थे, ये उसकी तराशी हुई आकृतियों से पता चल सकता है। तुम्हें इस बात का अंदाजा हो जाएगा कि किसी फारसी का भाला कितनी दूर तक जाता है। यानी उसका साम्राज्य दूर-दूर तक फैला है।

यह कहानी है ईरान के सुनहरे दौर की, जब पूरी दुनिया तक ईरान यानी तब के फारस की तूती बोलती थी। उसके पास साइरस और दारा जैसे महान राजा थे, जिन्होंने ईरान को बनाया। इन्हीं के जमाने में प्राचीन हिंदुस्तान से भी भारत का कनेक्शन था। प्राचीन ईरान यानी फारस को युद्धों ने ही बनाया था। उस दौर में एक से बढ़कर एक योद्धा और शासक पैदा हुए, जिन्होंने ईरान को पूरी दुनिया के नक्शे पर स्थापित कर दिया। हखमनी वंश के डेरियस प्रथम यानी दारा के शासनकाल में हखमनी साम्राज्य मिस्र से लेकर सिंधु नदी तक फैल गया था। उसने यूनान पर कब्जा किया और उत्तर में शकों से भी जंग जीती। दारा ने इतने बड़े साम्राज्य में एक जैसी मुद्रा चलाई और आरामाइक लिपि को राजभाषा करार दिया। उसने पर्सेपोलिस तथा पसरागेड जैसी जगहों पर महत्वपूर्ण निर्माण कार्य भी शुरु करवाया जो आज भी हखमनी स्थापत्य कला की पहचान हैं। दारा के शासन का ही असर था कि मौर्य सम्राट अशोक ने अपने कुछ शिलालेखों में खरोष्ठी और आरामाइक लिपि का इस्तेमाल किया। उसने पूरे साम्राज्य को 20 प्रांतों में बांटा और हर प्रांत के लिए गवर्नर यानी क्षत्रप नियुक्त किए। आज दुनिया में शासन की यह प्रणाली दारा की ही देन है।

आज जो आप हाइवे और सड़कें देखते हैं, उसकी अहमियत दारा ने उसी वक्त पहचान ली थी। उसने अपने पूरे साम्राज्य को खूबसूरत और चौड़ी सड़कों से जोड़ा। हाइवे का जाल बिछा दिया। राजा दारा ने चिट्ठी पहुंचाने के लिए डाक प्रणाली का भी चलन शुरू किया। पूरी दुनिया को उसने डाक व्यवस्था अपनाने के लिए प्रेरित किया। छठी शताब्दी ईसा पूर्व में दारा की आर्मी ने भारत पर आक्रमण किया और उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत, सिंध और पंजाब के प्रांतों को अपने अधिकार में कर लिया। सिकंदर के भारत पर आक्रमण करने तक ये क्षेत्र ईरानी साम्राज्य के नियंत्रण में रहे। ऐसे में फारस के साथ भारत के घनिष्ठ संबंध रहे। ईरान ने लगभग दो शताब्दियों तक भारत के साथ संबंध बनाए रखे। इस दौरान भारतीय व्यापारी दूर देशों की यात्रा करते थे। ऊनी कंबल, खाल, घोड़े, हाथी और कीमती पत्थर बेचते थे। इस दौरान भारत में फारसी चांदी के सिक्के चलन में थे। इन सिक्कों की ढलाई इतनी शानदार थी कि पूरी दुनिया में उनका नाम था।

भारतीय प्रांत से ईरान को राजस्व के रूप में खूब सारा सोना मिलता रहा। दारा के यूनानी सेनापति स्काईलक्स ने सिंधु से भारतीय समुद्र में उतरकर अरब और मकरान के तटों का पता लगाया था। वह जरथुस्त्र धर्म को माननेवाला था। राजा दारा ने सड़कों के जाल के अलावा नील नदी से लेकर लाल सागर तक एक नहर भी बनवाई हुई थी। दारा के खिलाफ एशिया माइनर के आयोनियन यूनानियों ने विद्रोह किया। लेकिन यह विद्रोह दबा दिया गया। विद्रोह के केंद्र माइलेतस नगर पर कब्जा करने के बाद वहां के समस्त पुरुषों का कत्लेआम कर दिया गया। औरतों और बच्चों को बंदी बनाकर अपने देश ले गए।

फारसियों के विस्तारवाद का असर 1935 में तब महसूस किया गया जब रेजा शाह पहलवी ने फारस के नाम से जाने जाने वाले देश का नाम बदलकर ईरान कर दिया। दरअसल, ईरान शब्द एरान से आया, जिसे प्राचीन फारसी राजा उन लोगों को कहते थे, जिन पर उन्होंने शासन किया था। मूल फारसी आर्य भाषी थे। आर्य एक भाषाई समूह है, जिसमें मध्य एशिया के बड़ी संख्या में खानाबदोश लोग शामिल थे। एक महान राजा के बनाए साम्राज्य को दूसरे महान राजा ने नष्ट कर दियासेंट एंड्रूयूज विश्वविद्यालय, स्कॉटलैंड के प्रोफेसर अली अंसारी के अनुसार, प्राचीन फारस के हखमनी साम्राज्य की राजधानी पर्सिपोलिस के खंडहरों को देखने जाने वाले हर सैलानी को तीन बातें मुख्य रूप से बताई जाती हैं। पहला-ये डेरियस द ग्रेट यानी दारा ने बनाया था। इसे उसके बेटे जेरेक्सीज ने आगे बढ़ाया। इसे उस इंसान ने तबाह कर दिया, जिसका नाम सिकंदर द ग्रेट था।

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