Sunday, May 19, 2024
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बिहार के गोपालगंज सीट के समीकरण क्यों बदले?

बिहार के गोपालगंज सीट के राजनीतिक समीकरण बिल्कुल बदल चुके हैं! बिहार विधानसभा की गोपालगंज सीट पर सियासी सरगर्मी तेज है। बीजेपी इस सीट को हर हाल में जीतना चाहती है। महागठबंधन की ओर से राजद के उम्मीदवार मोहन प्रसाद गुप्ता इस सीट पर उम्मीदवार हैं। वैश्य वोट बहुल गोपालगंज में राजद ने काफी सोच-समझकर वैश्य उम्मीदवार को मैदान में उतारा। राजद ने सोच रखा था कि परंपरागत यादव और मुस्लिम वोट उसी के पाले में आएंगे। मामला यहीं से यूटर्न हो गया। उधर, बीजेपी वैश्य वोटों पर अपना कब्जा मानती है। बाकी बचे यादव और मुस्लिम वोटों पर इतरा रही राजद के लिए दो और लोगों की एंट्री ने पार्टी को चिंतित कर दिया है। गोपालगंज सीट पर हो रहे उपचुनाव में शुरुआत में मुकाबला महागठबंधन और बीजेपी के बीच बताया जा रहा था। कुछ दिन पहले तक किसी तीसरे की एंट्री यहां नहीं हुई थी। उसके बाद एक के बाद एक मैदान में 9 प्रत्याशियों ने एंट्री मारी। जिसमें प्रमुख एंट्री रही पूर्व सांसद और विधायक लालू यादव के साले साधु यादव की। साधु यादव ने अपनी पत्नी इंदिरा यादव को चुनाव मैदान में उतार दिया। दूसरी महत्वपूर्ण एंट्री रही एआईएमआईएम यानि ओवैसी की पार्टी के उम्मीदवार अब्दुल सलाम की। राजद इन दोनों की एंट्री से पहले यादव और मुस्लिम वोटों पर अपना हक मानकर चल रही थी। ओवैसी के उम्मीदवार और बसपा से इंदिरा यादव की एंट्री के बाद पूरी कहानी बदल गई।

एमवाई समीकरण को अपनी सियासी संपत्ति मानने वाली राजद की चिंता बढ़ गई है। सियासी जानकार मानते हैं कि साधु यादव ने ऐलान कर रखा है कि पिछले दो दशकों से लालू परिवार का गोपालगंज से कोई नाता नहीं है। हालांकि, लालू परिवार का गोपालगंज जिले में पैतृक घर है, लेकिन साधु उन्हें अब प्रवासी बताते नहीं थकते। साधु ने पहले ही कह दिया है कि उन्होंने गोपालगंज में विकास किया। गोपालगंज के लिए काम किया और अब लोग उनके समर्थन में हैं। जानकारों की मानें, तो साधु यादव के ‘लोग’ कोई और नहीं। जिले का यादव और अति पिछड़ा वोट है। जिसे लेकर साधु आश्वस्त हैं। अब सवाल ये है कि जब साधु खुद यादव और अति-पिछड़ा वोट को लेकर आश्वस्त हैं, तो फिर तेजस्वी कहां जाएंगे?

तेजस्वी यादव अभी मामा साधु यादव के झटके से उबरे नहीं थे कि गोपालगंज सीट पर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम की एंट्री हो गई। सियासी जानकारों की मानें, तो एआईएमआईएम काफी अक्रामक कैंपेन करती है। मुस्लिम वोटर उनकी ओर जरूर आकर्षित होंगे। उम्मीदवार अब्दुल सलाम की मुस्लिम वोटरों में पैठ बताई जा रही है। वे अपने क्षेत्र के ज्यादा मुस्लिम वोटों को अपने पाले में करने में कामयाब होंगे। अब आप समझिए कि एमवाई समीकरण के सहारे सियासत साधने वाली राजद के हाथ से उसके परंपरागत वोटर खिसक गये। इंदिरा यादव के लिए साधु यादव दिन-रात जनसंपर्क चला रहे हैं। यादव वोटरों ने उन्हें पहले भी भरपूर वोट दिया है। इस बार भी वे साधु का समर्थन करने की बात कह रहे हैं। वहीं अब्दुल सलाम की एंट्री के बाद मुस्लिम वोट, जो साधु यादव या तेजस्वी को जाते, एआईएमआईएम के खाते में जाते दिख रहे हैं।

कुल मिलाकर तेजस्वी के मामा यानि साधु यादव और भाई जान यानि असदुद्दीन ओवैसी ने मिलकर महागठबंधन का खेल बिगाड़ दिया है। हालांकि, तेजस्वी जेडीयू के बड़े नेताओं के साथ गोपालगंज में कैंपेन चला रहे हैं। उन्हें भरोसा है कि उनका एमवाई समीकरण नहीं बिखरेगा। लेकिन, गोपालगंज सीट पर स्थितियां पूरी तरह बदल गई हैं। उधर, बीजेपी ने सबसे ज्यादा अपना फोकस वैश्य वोटरों पर रखा है। जिले की राजनीति को नजदीक से देखने वाले लोग कहते हैं कि बीजेपी की उम्मीदवार कुसुम देवी को सहानुभूति वोट मिलेंगे। इसके अलावा वैश्य वोट हमेशा से बीजेपी को सपोर्ट करते आएं हैं। इस बार ब्राह्मण, वैश्य और कायस्थ वोट एकजुट होकर बीजेपी को समर्थन कर रहे हैं। सियासी जानकार बताते हैं कि यदि साधु यादव और ओवैसी की पार्टी यादव और मुस्लिम वोटों को बिखेर देती है, तो बीजेपी इस सीट से सीधे आगे निकल जाएगी।

बीजेपी को भरोसा है कि उनके उम्मीदवार कुसुम देवी के पति सुभाष सिंह लगातार चार बार बीजेपी की टिकट पर गोपालगंज विधानसभा से विधायक चुने गए हैं। जनता उनपर भरोसा करती थी। अब उनकी पत्नी मैदान में हैं, लोग उन्हें भी खुलकर समर्थन करेंगे। राजनीतिक पंडितों की मानें, तो जिस डर से बीजेपी गुजर रही थी, उस डर को ओवैसी और साधु यादव ने पूरी तरह खत्म कर दिया। अब महागठबंधन से बीजेपी का सीधा मुकाबला नहीं होगा। बीच में दो पार्टियों की एंट्री ने बीजेपी को राहत प्रदान कर दी है। बीजेपी को साफ दिख रहा है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में साधु यादव दूसरे स्थान पर थे। इसका मतलब उन्हें वोट ज्यादा मिला था। इस बार वहीं साधु यादव महागठबंधन का वोट काट देंगे। वहीं 2020 में चौथे स्थान पर रहे अब्दुल सलाम एआईएमआईएम से उम्मीदवार हैं, जिन्हें सबसे ज्यादा मुस्लिम वोट मिले थे। जब एमवाई के सारे वोट साधु और अब्दुल सलाम में बंट जाएंगे, तो तेजस्वी की पार्टी के जीतने का सवाल ही नहीं है।

गोपालगंज उपचुनाव में ये साफ दिख रहा है कि महागठबंधन के वोटों में तगड़ा बिखराव है। उस स्थिति में फायदा बीजेपी को होता दिख रहा है। उन्होंने कहा कि गोपालगंज में मुस्लिम वोटरों की संख्या लगभग 65 हजार है। इनमे से 80 फीसदी से ज्यादा वोटरों ने पिछली बार के चुनाव में अब्दुल सलाम को वोट दिया था। इस बार ये आंकड़ा कुछ बढ़ जाएगा, यानि तेजस्वी के उम्मीदवार को मुस्लिम वोट नहीं मिलेंगे। बचे यादव वोटर जिनकी संख्या लगभग 47 हजार है। ये लोग साधु यादव को वोट देंगे। इन्होंने पिछले चुनाव में पूरा समर्थन साधु को दिया था। साधु दूसरे स्थान पर रहे। अब आप खुद ही समझ लीजिए कि इसमें तेजस्वी की भागीदारी कहां है।

बीजेपी इसी बीच कुसुम देवी को उम्मीदवार बनाकर सहानुभूति फैक्टर की सियासत पर चल रही है। पार्टी को लगता है सुभाष सिंह राजपूत थे। गोपालगंज सीट पर करीब 56 हजार सवर्ण वोटर हैं। ये सारे सवर्ण और वैश्य वोट बीजेपी की झोली में जाएंगे। जिस वोट पर तेजस्वी के उम्मीदवार को जीत मिलती, वो वोट पहले ही बंट चुके हैं। कुल मिलाकर तेजस्वी को उनके मामा और भाई जान ओवैसी ने पूरी तरह अलग-थलग कर दिया है। वैश्य जाति बीजेपी के वोटर माने जाते हैं। राजद को थोड़ी बहुत उम्मीद अपने वैश्य उम्मीदवार को मैदान में उतारने से है। मोहन प्रसाद गुप्ता वैश्य महासंघ के उपाध्यक्ष भी हैं। राजद के लिए एकमात्र उम्मीद वैश्य वोटर है। इसके अलावा पार्टी अति पिछड़ा वोट भी अपने पाले में आने की उम्मीद लगाए बैठी है।

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