यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस स्वास्थ्य सेवाओं को बदल सकता है या नहीं! आज AI अगर सबसे असरदार तरीके कहीं अपनी छाप छोड़ रहा है तो वह है स्वास्थ्य सेवा। भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं और विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी से जूझता मेडिकल सेक्टर काम के बोझ तले दबा है। ऐसे में AI भारत की स्वास्थ्य सेवा के लिए वरदान साबित हो सकता है, बशर्ते इसका उपयोग मानवीय दृष्टिकोण और तकनीकी तालमेल के साथ जरूरत के अनुसार हो। भारत में मेडिकल सेक्टर में AI की प्रासंगिकता पश्चिमी देशों से कहीं ज्यादा है। अस्पतालों में लगातार बढ़ती भीड़, स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, अच्छे विशेषज्ञ डॉक्टरों और प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों की कमी विकराल होती समस्या है।देश के सबसे बड़े अस्पतालों में से एक दिल्ली के AIIMS में ही देखें तो यहां मामूली सर्जरी के लिए भी मरीज को तीन से छह महीने तक इंतजार करना पड़ता है। कई बड़ी सर्जरी के लिए तो एक साल या उससे भी अधिक इंतजार करना पड़ सकता है। मामूली पैथोलॉजिकल जांच के लिए भी मरीजों को कई दिनों की लाइन में लगना पड़ता है। अगर दिल्ली के AIIMS की यह दशा है तो बाकी अस्पतालों का अंदाजा लगाया जा सकता है। छोटे शहरों और कस्बों की हालत और खराब है। प्राथमिक चिकित्सा सेवा हो या प्राइवेट अस्पताल, सबकी हालत कमोबेश ऐसी ही है।
AI से इन समस्याओं को बहुत हद तक कम किया जा सकता है। इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। दिल्ली या दूसरे महानगरों में अगर कोई मरीज एक्स-रे कराता है तो इसकी रिपोर्ट उसे घंटों बाद मिलती है। छोटे शहरों में तो कई दिन लग जाते हैं क्योंकि हर जगह रेडियोलॉजिस्ट उपलब्ध नहीं होते। AI ने इस मुश्किल को काफी आसान कर दिया है। इसकी मदद से एक्स-रे फिल्म के साथ ही रिपोर्ट भी मशीन से प्रिंट होकर निकलेगी। दिल्ली का AIIMS यह प्रयोग कर चुका है, जिसमें AI की मदद से टीबी के मरीज की छाती के एक्स-रे की जांच की गई, जो डॉक्टरों की जांच के हिसाब से सटीक पाई गई। इस प्रयोग ने टीबी उन्मूलन के 2025 के सरकारी लक्ष्य के प्रति उम्मीद जगा दी है।
AI की खासियत यह भी है कि इसे इस तरह से डिजाइन और प्रशिक्षित किया गया है कि यह मेडिकल रेकॉर्ड्स, तस्वीरें, फिल्में और वंशानुगत जानकारियों का बारीकी से अध्ययन करे। इससे रोग को जल्दी पकड़ने में आसानी होती है, जो आम तौर पर कई बार डॉक्टरों से छूट जाते हैं। उदाहरण के लिए, एक्स-रे और MRI की जांच में AI टूल विसंगतियों को तुरंत पकड़ लेता है, खासकर कैंसर और न्यूरो की गंभीर बीमारियों में। AI की मदद से नई दवाओं की खोज में भी मदद मिलती है। IIT, मद्रास ने हाल ही में एक ऐसा AI मॉडल तैयार किया है जो डायबिटिक रेटिनोपैथी को समय रहते पकड़ सके। भारत में मधुमेह रोगियों की संख्या लगातार बढ़ रही है और उन मरीजों में रेटिनोपैथी आम समस्या है। लगातार अनियंत्रित डायबिटीज रोगी की आंखों को प्रभावित करता है जो बाद में रेटिनोपैथी का रूप ले लेता है। AI के माध्यम से ऐसे मरीजों की जांच कर समय रहते आगाह किया जा सकता है ताकि उसे अंधापन से बचाया जा सके।
भारत में इस तकनीक की मदद से सरकार संक्रामक रोगों को ट्रैक करने और उसका पता लगाने का काम कर रही है। इसमें कोविड-19 जैसी महामारी भी है। लोगों तक स्वास्थ्य संबंधी सूचनाएं पहुंचाने के लिए सरकार AI युक्त चैटबॉट्स का इस्तेमाल कर रही ,है जिसमें विभिन्न भारतीय भाषाओं में मरीजों के सवालों के जवाब जिए जाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में भी AI युक्त चिकित्सा समाधान पर काम चल रहा है। अभी यह शुरुआत है, इस पर बहुत काम होना बाकी है। यह तभी पूर्ण रूप से विकसित हो पाएगा जब इसकी स्वीकार्यता बढ़ेगी- मरीजों और स्वास्थ्य कर्मियों में भी। इसकी मदद से एक्स-रे फिल्म के साथ ही रिपोर्ट भी मशीन से प्रिंट होकर निकलेगी। दिल्ली का AIIMS यह प्रयोग कर चुका है, जिसमें AI की मदद से टीबी के मरीज की छाती के एक्स-रे की जांच की गई, जो डॉक्टरों की जांच के हिसाब से सटीक पाई गई। इस प्रयोग ने टीबी उन्मूलन के 2025 के सरकारी लक्ष्य के प्रति उम्मीद जगा दी है।इसके लिए सबसे पहले उस धारणा को तोड़ना होगा कि यह तकनीक स्वास्थ्य सेवा से जुड़े प्रफेशनल्स को रिप्लेस करने के लिए नहीं बल्कि उनकी कार्यकुशलता बढ़ाने के लिए है। मानवीय संवेदना हमेशा सर्वोच्च है जिसे रिप्लेस नहीं किया जा सकता, खासकर जब मामला मरीज और उससे जुड़े संवेदनशील डेटा का हो।