यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या अब भारत को अमेरिका का प्रीडेटर ड्रोन मिलेगा या नहीं !अमेरिका में 9/11 हमलों के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने 2003 में अफगानिस्तान और इराक के खिलाफ वॉर ऑन टेरर का ऐलान कर दिया। उस वक्त इन दो देशों में बड़े पैमाने पर प्रीडेटर ड्रोंस से हमले किए गए। इन मानवरहित ड्रोंस को रीपर ड्रोन भी कहा जाता है। अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA और एयरफोर्स ने सबसे पहले इनका इस्तेमाल दुश्मनों के खिलाफ करना शुरू किया। 1995 में इनका इस्तेमाल होना शुरू हुआ था। अफगानिस्तान, पाकिस्तान, इराक, सीरिया और यमन में आतंकियों के खिलाफ इन ड्रोंस का सबसे ज्यादा इस्तेमाल हुआ। यहां तक कि नाटो सेनाओं ने भी इसका व्यापक रूप से इस्तेमाल किया। अब यही प्रीडेटर ड्रोन के एडवांस वजर्न यानी MQ-9B भारतीय सेना, वायुसेना और नौसेना का भी हिस्सा होंगे, जिसकी डील का रोडमैप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के साथ तैयार किया है। माना जा रहा है कि अक्टूबर तक ये डील पूरी तरह पक्की हो जाएगी। जानते हैं इस ड्रोन के कारनामे और भारत की जरूरतों को पूरा करने में यह कितना सक्षम होगा।
बता दे कि प्रीडेटर ड्रोन के बारे में कहा जाता है कि इसने पाकिस्तान में छिपे बैठे आतंकियों को खोज-खोजकर मारा। पाकिस्तानी मीडिया इसे ड्रोन वॉर भी कहता है। 2004 से लेकर 2018 के बीच अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने प्रीडेटर ड्रोन से खैबर पख्तूनख्वा इलाके में रह रहे 5,059 आतंकियों को मार गिराया। इसमें अफगानिस्तान तालिबान के कमांडर बैतुल्लाह मेहसूद, हकीमुल्लाह मेहसूद और अख्तर मंसूर जैसे आतंकी मारे गए थे। यह नीति बराक ओबामा और उनके बाद आए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल तक चलती रही है। इसे लेकर पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भी ऐतराज जता चुके हैं।
MQ-9B प्रीडेटर ड्रोन एक मानवरहित यूवी या विमान है। ये ड्रोन जमीन पर दो पायलटों के जरिये रिमोट से संचालित किए जाते हैं। MQ-9B के कुल दो वर्जन हैं, इसमें सी-गार्जियन और स्काई गार्जियन है। ये ड्रोन जमीन से लेकर आसमान और समंदर से लॉन्च किए जा सकते हैं। MQ-9B ड्रोन को प्रीडेटर्स के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि ये मारक हथियारों से लैस होते हैं। प्रीडेटर ड्रोन को इटली, इजराइल और तुर्की की सेनाएं इस्तेमाल करती हैं। इसकी सटीक मारक क्षमता की वजह से जन-धन की हानि कम होती है, इसलिए दुनियाभर में इस अमेरिकी ड्रोन की डिमांड ज्यादा रहती है। हालांकि, ये सबको आसानी से नहीं मिल सकता है। इसके लिए अमेरिकी कांग्रेस जब इजाजत देता है, तभी इसे किसी देश को दिया जा सकता है।
अमेरिकी सेनाओं की रक्षक रहे इस प्रीडेटर ड्रोन ने इस्लामिक स्टेट के लीडर अबु बकर अल बगदादी और उसके सैन्य कमांडर मोहम्मद आतिफ को मौत के घाट उतार दिया था। ये सभी ड्रोन से किए गए मिसाइल हमलों में मारे गए थे। जनवरी, 2020 में ईरान में रसूखदार जनरल कासिम सुलेमानी को इसी अमेरिकी ड्रोन ने उड़ा दिया था। इसके अलावा, कई अलकायदा लीडर भी प्रीडेटर ड्रोंस के हमलों में मारे गए थे। MQ-9B प्रीडेटर ड्रोन बनाने वाली अमेरिकी कंपनी जनरल एटॉमिक्स के अनुसार, यह शिकारी ड्रोन 50,000 फीट की ऊंचाई से सीमाओं की निगहबानी कर सकता है। 950 शाफ्ट हॉर्सपावर (712 किलोवाट) के इंजन से यह ड्रोन तेज गति से चलता है। अमेरिकी फर्म के अनुसार, प्रीडेटर ड्रोन या रीपर को मुख्य रूप से जमीन या समुद्र पर मल्टी मिशन इंटेलिजेंस, निगरानी और टोह लेने के लिए बनाया गया है।
यह प्रीडेटर ड्रोन 40 घंटे तक लगातार आसमान में उड़ सकता है। यह एक बार में 442 किलोमीटर की रफ्तार पकड़ सकता है। यह बाज की तरह अपने शिकार पर हमला कर सकता है। आसमान में इसके 66 फीट लंबे पंख इसे बेहद घातक बनाते हैं। MQ-9B प्रीडेटर ड्रोन के दो वर्जन हैं। एक स्काई गार्जियन और दूसरा समुद्र की देखरेख करने वाला सी गार्जियन। यह अपने साथ 1,746 किलोग्राम वजन तक के बम और मिसाइलें ले जा सकता है। इसमें लगी मिसाइलों का निशाना इतना अचूक होता है कि यह जंगल में भी छिपे दुश्मनों को ध्वस्त कर सकता है। जमीन पर यह ज्यादा ऊंचाई वाले टार्गेट को नष्ट कर सकता है। समुद्र में बेहद गहराई तक मार कर सकता है। अमेरिका ने अफगानिस्तान में रहते हुए तालिबानी आतंकियों को मारने के लिए ऑपरेशन एनाकोंडा चलाया था। इसका इस्तेमाल 2002 में बंकरों में छिपे तालिबानियों को मारने में किया गया था। उस वक्त अमेरिका के एफ-15 और एफ-16 जैसे जंगी विमान भी इन बंकरों को नष्ट करने में विफल हो गए थे। तब यही प्रीडेटर ड्रोन काम आए थे।
भारत-अमेरिका के बीच 25,887 करोड़ रुपए (3.9 बिलियन डॉलर) की डील हुई। इसके तहत अमेरिका भारत को 31 हाई एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्योरेंस ड्रोंस देगा। इसमें भारतीय सेना और वायुसेना को 8-8 स्काई गार्जियन ड्रोंस तो भारतीय नौसेना को 15 सी-गार्जियन ड्रोन मिलेंगे।