Friday, May 17, 2024
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आखिर कैसे हुआ अलीपुर का अग्निकांड हादसा?

आज हम आपको बताएंगे कि अलीपुर का अग्निकांड हादसा कैसे हुआ था! अलीपुर अग्निकांड में शनिवार को घटना स्थल पर अब सिर्फ राख और मलबे का ढेर पड़ा हुआ है, लेकिन लोगों के बीच उस घटना को लेकर के दहशत अभी तक काम नहीं हुई है। लोगों के सामने बार-बार वह मंजर सामने आ रहा है। लोगों के घर और दुकान इस अग्निकांड में बर्बाद हो गए, उसका दर्द शायद महीनों तक उनकी आंखों से ओझल नहीं हो सकता है। एक ऐसे ही व्यक्ति हैं उमेश प्रसाद भगत जी, जो आग लगने से महज 15 मिनट पहले ही उस पेंट फैक्ट्री से हो कर आए थे। उन्हें भी इस घटना के बाद गहरा सदमा लगा है। उमेश प्रसाद ने बताया कि वह चाय लेकर के फैक्ट्री में पहुंचे थे उस वक्त 10 लोगों के लिए चाय, उन्होंने फैक्ट्री में रखी थी। वहां काम करने वाले लोगों के साथ थोड़ा हंसी मजाक भी हुआ था। वह कहते हैं कि अभी उन्हें यकीन नहीं हो रहा है कि वह लोग अब इस दुनिया में नहीं है। घटना के बाद से वे अस्वस्थ हो गए। उन्होंने बताया कि उस समय फैक्ट्री में 13 लोग थे, जिसमें से शायद एक या दो लोग किसी काम से बाहर गए थे। यही कारण है कि शायद उनकी जान बच गई।

वहीं दूसरी तरफ जिन लोगों के घर इस अग्निकांड में जले हैं उनके लिए फिर से खड़ा हो पाना बेहद मुश्किल सा दिखाई पड़ रहा है। पेंट फैक्ट्री के ठीक सामने मौजूद नशा मुक्ति केंद्र भी इस घटना में जल गया। वहां काम करने वाले लोगों ने बताया कि अब वह बेघर हो गए हैं। केंद्र चलाने वाले चंद्रशेखर बघेल का महीनेभर पहले ही बीमारी से मौत हो चुकी है। उनके भाई मनोज ने बताया कि इस मकान में लाखों रुपये का नुकसान हो गया है। अब इसको फिर से खड़ा कर पाना बेहद मुश्किल दिख रहा है। उसके साथ ही यहां हेयर कटिंग की दुकान करने वाले रोहित ने बताया कि दुकान जलने की वजह से मकान की हालत भी खराब हो गई है। उन्हें कोई दूसरा उपाय दिखाई नहीं दे रहा है। उन्हें इतना सुकून है कि कम से कम जान बच गई।

अलीपुर भीषण अग्निकांड में 11 लोगों की दर्दनाक मौत गई। इस घटना में कई लोग लापता बताए जा रहे थे। ऐसे में अपनों की तलाश में लोग हादसे की रात से ही लोग घटनास्थल और अस्पताल के चक्कर लगा रहे थे। बिहार के मुजफ्फरपुर की रहने वाली कालिया देवी भी अपने बेटे राम प्रवेश को तलाशते हुए पहुंची थीं। उन्होंने बताया कि उनका बेटा पिछले करीब 5 साल से इसी फैक्ट्री में काम करता था। अभी बेटे की शादी भी नहीं हुई थी। वह अपनी एक बेटी के साथ अलीपुर की ही एक अन्य फैक्ट्री में काम करती हैं। घटना के बाद से वह कई बार घटनास्थल और अस्पताल के चक्कर लगाती रहीं। हालांकि रामप्रवेश का कोई पता नहीं चल सका।

हादसे में जान गंवाने वाले अनिल ठाकुर का परिवार भी उन्हें परेशान होकर खोजता रहा। उनके भाई सुनील ठाकुर ने बताया कि वह तीन साल से इसी फैक्ट्री में काम करते थे। पुलिस का कहना है कि फैक्ट्री के अंदर रह गए सभी लोगों की मौत हो गई है। वह परिवार के साथ किराड़ी की विद्यापति कॉलोनी में रहते हैं। अनिल के बेटे हर्ष ठाकुर अपने पिता को ढूंढते हुए शुक्रवार को बाबू जगजीवन राम हॉस्पिटल के मोर्चरी रूम तक पहुंचे। हर्ष ने रोते हुए बताया कि गुरुवार शाम को 4:30 बजे उनके पिता से उनकी फोन पर बात हुई थी। वह कुछ हंसी मजाक भी कर रहे थे। हालांकि करीब शाम 6 बजे जब उन्हें इस घटना के बारे में जानकारी मिली। उसके बाद से ही उनका फोन बंद है। अब मोर्चरी में पिता का शव भी नहीं देख पा रहे हैं। उन्होंने बताया कि वह दो भाई और एक बहन हैं। बहन 12वीं में पढ़ाई करती है और वह खुद दसवीं में है। पिताजी ही घर का खर्च चलाते थे, लेकिन अब सब कुछ बर्बाद हो गया है।

सोनिया विहार से अपने भाई की तलाश में पहुंचे धर्मेंद्र गौड़ ने बताया कि उनके भाई विशाल अलमारी बनाने का काम करते थे। वह ठेकेदार के पास मजदूरी करते थे। हर रोज अलग-अलग जगहों पर जाना होता था। गुरुवार को वह अलीपुर की इसी फैक्ट्री में काम करने के लिए पहुंचे थे, तभी भीषण आग लग गई। इसके बाद से ही उनका कोई अता-पता नहीं है। उन्हें खोजने के लिए वह भटक रहे हैं। उन्होंने बताया कि वह चार भाई हैं और दो भाई दिल्ली में रहकर माता-पिता और परिवार का खर्च चलाते थे।

अस्पताल के बाहर गमगीन परिवारों में एक परिवार राम सूरज सिंह के बड़े भाई दिनेश सिंह भी वहां पहुंचे हुए थे। उन्होंने बताया कि सिर्फ दो दिन से काम करने जा रहे थे। रामसूरत सिंह के छोटे-छोटे दो बच्चे हैं। घटना की जानकारी मिलने के बाद से ही घर में मातम छा गया है। लखीमपुर का रहने वाले पंकज भी रामसूरत सिंह और विशाल के साथ उसे फैक्ट्री में काम करने के लिए पहुंचे थे। वे सभी लोग अलमारी की फिटिंग करने के लिए उस वक्त फैक्ट्री के अंदर थे।

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