आज हम आपको सुभाष चंद्र बोस और वीडी सावरकर के बीच की खास बातें बताने जा रहे हैं! भारत की राजनीति के दो ऐसे दिग्गज जिसकी चर्चा गाहे-बगाहे हमारे सामने होती ही रहती है। चाहे समाचार पत्रों में छपे लेख के माध्यम से, किसी बड़े मंच पर विषय के तौर पर या किसी टीवी चैनल में बहस के तौर पर। उनमें से एक ऐसा क्रांतिकारी नेता जिसके ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’, ‘जय हिंद! दिल्ली चलो’ समेत कई करिश्माई नारों ने आजादी की लड़ाई में अलग ही जोश भर दिया था। ऐसा नेता जो कभी आजाद भारत का प्रधानमंत्री होने वाला था, जिसकी आजाद हिंद फौज के चर्चे आज भी किए जाते हैं। दूजा वह जिसकी देशभक्ति पर आज भी सवाल उठते हैं। जिसे एक वर्ग अंग्रजों का पिट्ठू, माफीवीर की संज्ञा देता है। आप समझ ही गए होंगे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस और विनायक दामोदर सावरकर। नेताजी की आज 127वीं जयंती है। ऐसे में एक संवाद की चर्चा हम आपसे करने जा रहे हैं जो नेताजी और सावरकर के बीच हुई थी। दोनों नेताओं के बीच यह संवाद तब हुआ था जब सावरकर साल 1940 में काला पानी की सजा काटकर और जेल से छूटकर अपने निवास स्थान आए थे। यह प्रसंग उसी दौरान का है।
विनायक दामोदर सावरकर जिन्हें वीर सावरकर भी कहा जाता है साल 1940 में जेल से छूटने के बाद अपने निवास स्थान पर आराम रहे थे। उसी दौरान उनसे मिलने नेताजी सुभाष चंद्र बोस आए। बोस के सहयोगी ने अंदर आकर सावरकर से कहा कि नेताजी आए हुए हैं और आपसे मिलना चाहते हैं। सावरकर ने कहा कि उनको सम्मान के साथ अंदर लेकर आओ। बोस अंदर आए और वीडी सावरकर से मुलाकात की। नेताजी ने कहा कि आपसे मिलने से पहले मैं मिस्टर जिन्ना से मिलने गया था और उनसे मुलाकात करने के बाद आपके पास आया हूं। बोस ने सावरकर से जिन्ना से मुलाकात का कारण भी बताया। बोस ने कहा कि कलकत्ता( अब कोलकाता) में होलवेल स्मारक में ब्रिटिश मूर्तियों को हटाने के लिए विरोध प्रदर्शन चल रहा है। मैं इसे हिंदू-मुस्लिम एकता के रूप में प्रस्तुत करना चाहता हूं। इसी सिलसिले में मैं जिन्ना से मिलने गया था। बोस ने आगे कहा कि जिन्ना ने मुझसे कहा कि अगर एकता का प्रस्ताव कोई हिंदू नेता लेकर आता तो वह इसपर विचार करते लेकिन ऐसा लग रहा है कि फॉरवर्ड ब्लॉक तो कांग्रेस का ही संगठन है इसलिए आप हिंदुओं के नेता वीर सावरकर से मिलिए। इसलिए मैं आपसे मिलने आया हूं।
22 जून 1940, सुभाष चंद्र बोस मुंबई पहुंचे और वीडी सावरकर के साथ फॉर्वर्ड ब्लॉक और हिंदू महासभा के बीच सहयोग की संभावनाओं के लिए चर्चा की। दोनों के बीच यह मुलाकात सावरकर के निज निवास में हुई थी। इस चर्चा के दौरान सावरकर ने सुभाष को सुझाव दिया कि वह कलकत्ता में होलवेल स्मारक जैसी ब्रिटिश मूर्तियों को हटाने के लिए विरोध प्रदर्शन आयोजित करने में समय बर्बाद न करें। सावरकर ने आगे कहा कि आप देश से बाहर दूसरे विश्व युद्ध में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ खड़ी शक्तियों तक पहुंचें और पहले विश्व युद्ध के बाद जर्मनी में बंद भारतीय कैदियों की मुक्ति करवाएं और एक भारतीय सेन का गठन करें। इस पूरी चर्चा का जिक्र जापान के लेखक और प्रकाशक युकिकाजु सकुरासावा ने अपनी किताब ‘द टू ग्रेट इंडियंस इन जापान’ में किया है।
उस किताब में बताया गया कि बॉम्बे में सावरकर सदन में नेताजी और सावरकर के बीच हुई यह बैठक काफी निजी और व्यक्तिगत थी। सावरकर ने नेताजी को भारत छोड़ने और जर्मनी जाने का सुझाव दिया था। सावरकर ने आगे कहा कि वहां भारतीय सेनाएं बंदी के रूप में हैं। उन्हें जर्मनी की सरकार से मदद लेकर रास बिहारी बोस के साथ जापान से हाथ मिला चाहिए। इस बात के लिए सावरकर ने नेताजी को उन्हें रास बिहारी की ओर से लिखा एक पत्र दिखाया। कह सकते हैं कि सावरकर ने रास बिहारी बोस और नेताजी के बीच एक पुल का काम किया था।
सुभाष चंद्र बोस सावरकर की हिंदू महासभा और मोहम्मद अली जिन्ना की मुस्लिम लीग को राजनीतिक लिहाज से समान मानते थे। सुभाष ने अपनी किताब द इंडियन स्ट्रगल में इसका जिक्र किया है। बोस ने अपनी किताब में लिखा कि मिस्टर जिन्ना तब केवल यही सोचते हैं कि अंग्रेजों की मदद से कैसे अपने पाकिस्तान बनाने वाले विचार को साकार किया जाए। उन्हें कभी कांग्रेस के साथ आजादी की संयुक्त लड़ाई लड़ने का विचार नहीं आया। वहीं सावरकर के बारे में कहा कि वह अंतरराष्ट्रीय स्थिति से बेखबर लग रहे थे। वह केवल यही सोच रहे थे कि कैसे भारत की सेना में शामिल होकर सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं। बोस ने आगे कहा कि मैं इस नतीजे में पहुंचा हूं कि मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा दोनों से कोई उम्मीद नहीं की जा सकती है।