हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल में एनआरआई कोटे को लेकर पंजाब सरकार को फटकार लगाई है! मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन में अप्रवासी भारतीयों (एनआरआई) के दूर के रिश्तेदारों को भी आरक्षण दिए जाने को धोखाधड़ी बताते हुए पंजाब सरकार की फटकार लगाई है। उच्चतम न्यायालय ने साफ शब्दों में कहा कि यह फर्जीवाड़ा है और इसे बंद करना होगा। पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार है और भगवंत मान मुख्यमंत्री हैं। मान सरकार ने मेडिकल कॉलेजों में एनआरआई कोटा बढ़ाने की याचिका हाईकोर्ट से खारिज होने के बाद सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। अब हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली पंजाब सरकार की याचिका सुप्रीम कोर्ट से भी रिजेक्ट हो गई। शीर्ष अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि एनआरआई के दूर के रिश्तेदारों को एडमिशन में आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा, ‘यह धोखाधड़ी बंद होनी चाहिए।’ यह फैसला ऐसे समय में आया है जब कर्नाटक सरकार 2025-26 शैक्षणिक वर्ष से सरकारी मेडिकल कॉलेजों में 15% एनआरआई कोटा शुरू करने पर जोर दे रही है। इस महीने की शुरुआत में, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने पंजाब सरकार की उस अधिसूचना को रद्द कर दिया था जिसमें राज्य भर के मेडिकल कॉलेजों में एनआरआई कोटा से एडमिशन की शर्तों में संशोधन किया गया था। हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस शील नागू और जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल की पीठ ने फैसला सुनाया कि राज्य की 20 अगस्त की अधिसूचना, जिसमें दूर के रिश्तेदारों को शामिल करने के लिए एनआरआई उम्मीदवारों की परिभाषा को व्यापक बनाया गया था, ‘पूरी तरह अनुचित’ थी।
अदालत ने कहा कि एनआरआई कोटा मूल रूप से वास्तविक एनआरआई और उनके बच्चों को लाभ पहुंचाने के लिए था, जिससे उन्हें भारत में शिक्षा प्राप्त करने में मदद मिले। हालांकि, चाचा, चाची, दादा-दादी और चचेरे भाई-बहनों जैसे रिश्तेदारों को एनआरआई श्रेणी में शामिल करने के सरकार के कदम ने नीति के मूल उद्देश्य को कमजोर कर दिया। अदालत ने कहा, ‘परिभाषा को व्यापक बनाने से संभावित दुरुपयोग का द्वार खुल जाता है, जिससे नीति के उद्देश्य से बाहर के व्यक्ति इन सीटों का लाभ उठा सकते हैं, जो संभावित रूप से अधिक योग्य उम्मीदवारों को दरकिनार कर सकते हैं।’ अदालत ने 28 अगस्त को गीता वर्मा और अन्य उम्मीदवारों की याचिका प्राप्त करने के बाद पहले ही नोटिफिकेशन पर रोक लगा दी थी।
उन्होंने तर्क दिया कि मेडिकल प्रवेश के लिए एक प्रॉस्पेक्टस 9 अगस्त को जारी किया गया था, लेकिन सरकार ने 20 अगस्त के नोटिफिकेशन से एडमिशन क्राइटेरिया बदल दिया जो स्वीकार्य नहीं है। अदालत ने नए प्रावधान की अस्पष्टता की आलोचना की, जो दूर के रिश्तेदारों को केवल यह दावा करके अभिभावक के रूप में अर्हता प्राप्त करने की अनुमति देता है कि उन्होंने एक छात्र की देखभाल की है। इसने रेखांकित किया कि इससे हेरफेर के रास्ते खुल गए, जिससे व्यक्तियों को एनआरआई कोटे के तहत प्रवेश प्राप्त करने के एकमात्र उद्देश्य के लिए अभिभावक होने का दावा करने की अनुमति मिल गई। पीठ ने तर्क दिया कि यह योग्यता आधारित प्रवेश प्रक्रिया को कमजोर करता है, जिससे अधिक शैक्षणिक रूप से योग्य छात्रों को अनुचित रूप से नुकसान होता है।
इस बीच जून महीने में कर्नाटक के चिकित्सा शिक्षा मंत्री शरण प्रकाश पाटिल ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) को पत्र लिखकर 22 सरकारी मेडिकल कॉलेजों में 508 अतिरिक्त एमबीबीएस सीटें तैयार करने की मंजूरी मांगी। ये सीटें एनआरआई छात्रों के लिए हैं। पाटिल ने इस प्रस्ताव के औचित्य के रूप में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के दिशा-निर्देशों और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का हवाला दिया, जो भारतीय संस्थानों में अंतरराष्ट्रीय छात्रों के प्रवेश को प्रोत्साहित करते हैं।
अभी कर्नाटक केवल निजी मेडिकल कॉलेजों में एनआरआई एडमिशन की अनुमति देता है, जहां छात्र ₹1 करोड़ से ₹2.5 करोड़ तक की फीस देते हैं। इसके विपरीत राजस्थान, हरियाणा और पंजाब जैसे राज्य सरकारी मेडिकल कॉलेजों में एनआरआई सीटों के लिए 75 हजार से 1 लाख अमेरिकी डॉलर (करीब 63 लाख से 1 करोड़ रुपये) के बीच शुल्क लेते हैं। पाटिल का मानना है कि कर्नाटक में कोटा लागू करने से सरकारी की मोटी कमाई होगी जिससे मेडिकल कॉलेजों में सुविधाओं और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा, जो सरकारी फंडिंग के बावजूद वित्तीय चुनौतियों का सामना करते हैं।
पाटिल ने एनआरआई छात्रों के लिए ₹25 लाख एनुअल फी रखने का प्रस्ताव रखा है। उनका अनुमान है कि इससे अकेले पहले वर्ष में ₹127 करोड़ की आय हो सकती है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि केंद्र इस प्रस्ताव को मंजूरी देगा, जिससे राज्य को 2025-26 शैक्षणिक वर्ष तक सरकारी मेडिकल कॉलेजों में एनआरआई कोटा लागू करने की अनुमति मिल जाएगी।