Friday, May 17, 2024
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क्या है गूलर में छुपे राज।क्यों इसका सेवन देता है चमत्कारी लाभ।

गूलर से जुड़ी आपने कोई न कोई कहानी तो जरूर सुनी होगी।पर शायद आपको इसके लाभ का इतना पता नहीं चला होगा। आईए आज गूलर से जुड़ी कहानियो को के पिछे छुपा सच जानते है। क्यों इसे चमत्कारी फल कहा जाता है? इस लेख में हम जानेंगे कि गूलर से क्या लाभ होते है।

जैसा की हम जानते है की औषधीय गुणों की जानकारी के लिए हम पूरी तरह अपने पुराणिक ग्रंथो पर निर्भर है। उन्ही ग्रंथो के अनुसार गूलर का पेड़ हेमदुग्धक, जन्तुफल, सदाफल आदि नामों से जाना जाता है। इस पेड़ का हर हिस्सा चमत्कारी गुणों से युक्त है। इस पेड़ की एक ख़ास बात ये है की हम यदि इसके तने या डाल आदि में किसी भी स्थान पर चीरा लगाने से सफेद दूध निकलता है। दूध को थोड़ी देर रखने पर पीला हो जाता है इसके इन्हीं कारणों से इसको हेमदुग्धक नाम से जाना जाता है। वही इसके फल में कीट होने के कारण गूलर को जन्तुफल कहा जाता है। पूरे साल फल देने की वजह से इसे सदाफल भी कहा जाता है।

पर्यावरण को शुद्ध करता है:कोरोना काल में गूलर का पेड़ बहुत महत्वपूर्ण साबित हुआ है। दरअसल, गूलर का पेड़ भरपूर आक्सीजन देने वाले पेड़ो में से एक है। इसका फल एंटी वायरस, एंटी बैक्टीरियल गुणों से भरपूर होता है। साथ ही विषैले पदार्थो को शरीर से निष्कासित करने में महत्वपूर्ण योगदान देता है।

गूलर के पेड़ से ल्यूकोरिया (प्रदर) रोग का इलाज के लिए एक बहुत अच्छी औषधी है।

5-10 ग्राम गूलर के रस को मिश्री के साथ मिलाकर सुबह शाम पिएं। इससे सफेद पानी या ल्यूकोरिया (स्त्रियों की योनी से सफेद पानी निकलना) में लाभ होता है।
इसमें मधु मिलाकर पीने से मासिक धर्म विकार ठीक होता है।
10-15 ग्राम ताजी छाल को कूटकर, 250 मिली पानी में पकाएं। जब पानी थोड़ा रह जाए तो छान कर अपनी इच्छा के अनुसार मिश्री व डेढ़ ग्राम सफेद जीरे का चूर्ण मिला लें। इसे सुबह-शाम पिलाएं। भोजन में इसके कच्चे फलों का रायता बनाकर खिलाएं। इस प्रयोग से मासिक धर्म विकार में लाभ होता है।

घाव सुखाने के लिए गूलर का औषधीय गुण फायदेमंद।

  • गूलर में कठिन से कठिन घाव को ठीक करने की क्षमता है। गूलर के दूध में रूई का फाहा भिगोकर नासूर यानी पुराने पर रखें। इससे घाव ठीक हो जाता है।
  • घाव पर गूलर की छाल बाँधने और कैंसर की गाँठ पर गूलर के पत्तों को घिसने से लाभ होता है।
  • गूलर के कच्चे फलों के महीन चूर्ण में बराबर भाग खांड़ मिलायें। इस चूर्ण को 2 से 6 ग्राम (या 10 ग्राम) की मात्रा में, कच्चे दूध या मिश्री मिली हुई लस्सी के साथ सेवन करें। इससे शुरुआती अवस्था में सुजाक वाले घाव में विशेष लाभ होता है।
  • गूलर के फल के काढ़ा में 3 ग्राम कत्था व 1 ग्राम कपूर मिला लें। इस गुनगुने काढ़ा से पुरुष के लिंग को धोएं। इससे जख्म के अंदर का मवाद आना बंद हो जाता है
  • गूलर के दूध में बावची के बीज भिगो लें। इसे पीसकर 1-2 चम्मच की मात्रा में नियमित लेप करें। इससे सभी प्रकार की फुंसियाँ और घाव मिट जाते हैं।
  • गूलर की छाल को गौमूत्र से पीसकर घी में भून लें। नासूर पर इसका लेप करने से लाभ होता है।
  • गूलर के दूध को घाव पर लगाने से घाव जल्दी भरता है।
  • गूलर की छाल का काढ़ा बनाकर घाव को धोने से घाव जल्दी भर जाता है।
  • गूलर की छाल की राख को घी के साथ मिलाकर लगाने से बिवाइयां, मुँहासे, बलतोड़ तथा डायबिटीज के कारण हुई फुंसियां ठीक होती हैं।

रक्त विकार में गूलर से लाभ है अद्भुत।

शरीर के किसी अंग से खून बहता हो, और सूजन हो तो ऐसे रोगों के लिए गूलर एक उत्तम औषधि है। नाक से खून बहना, पेशाब के साथ खून आना, मासिक धर्म में रक्तस्राव अधिक होना और गर्भपात आदि रोगों में गूलर का इस्तेमाल लाभदायक होता है। इसके 2-3 पके फलों को चीनी या खांड़ के साथ दिन में तीन बार लेने से तुरन्त आराम मिलता है।
गूलर के सूखे कच्चे फलों के चूर्ण में बराबर मात्रा में मिश्री मिला लें। इसे 5 से 10 ग्राम तक की मात्रा में ताजे जल के साथ सुबह-शाम 21 दिन तक सेवन करें। इससे मासिक धर्म विकार, रक्तस्राव, गर्भपात, खूनी पेचिश में लाभ होता है।
गूलर के 5 ग्राम सूखे हरे फलों के चूर्ण को पानी में पीस लें। इसे मिश्री के साथ पिलाने से भी खून की गर्मी में लाभ होता है।
5 मिली गूलर के पत्तों (gular leaf) के रस में शहद मिलाकर पिलाने से खून की गर्मी तथा खूनी पेचिश में लाभ होता है।
कमलगट्टे और गूलर के फलों के 5 ग्राम चूर्ण को दूध के साथ दिन में तीन बार देने से उलटी के साथ खून का आना बन्द हो जाता है।
20-30 ग्राम गूलर की छाल को पानी में पीसकर तालु पर लगाने से नकसीर (नाक से खून आना) बंद हो जाता है।
5 मिली गूलर पत्तों के रस में बराबर भाग मिश्री मिलाकर सुबह और शाम सेवन करें। कुछ समय तक सेवन करने से उलटी में खून आना बंद होगा।

कब लगाएं गूलर का पेड़।

मानसून के मौसम में गूलर का पौधा लगाया जाता है। इसी मौसम में नर्सरी अथवा जंगल से तीन या चार इंच की डंडी (जिसे कलम कहते हैं) द्वारा इसे रोपा जा सकता है।

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