लीवर की बीमारी हमारे सभी तंत्रों का नाश करके रख देती है! स्वस्थ शरीर के लिए लिवर का स्वस्थ रहना जरूरी होता है। लिवर पाचन तंत्र के लिए शरीर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह शरीर के अधिकांश रासायनिक स्तरों को नियंत्रित करने के साथ ही पित्त का उत्पादन करता है। इसके अलावा अपशिष्ट उत्पादों को शरीर से बाहर निकालने का काम भी लिवर करता है। ऐसे में लिवर को होने वाली किसी भी समस्या का प्रभाव पूरे शरीर पर पड़ सकता है। लिवर की समस्या कई तरह की बीमारियों का कारण बनती है। इसमें हेपेटाइटिस ऐसी ही गंभीर बीमारी है जो लिवर में सूजन के कारण होती है। लिवर में सूजन संक्रमण की वजह संक्रमण हो सकता है। हेपेटाइटिस का संक्रमण दो तरह का हो सकता है, एक्यूट हेपेटाइटिस (अल्पकालीन) और क्रॉनिक हेपेटाइटिस (दीर्घकालीन)। हेपेटाइटिस के लक्षणों को अनदेखा करना जान का जोखिम बढ़ा सकता है। ऐसे में आपको पता होना चाहिए कि लिवर की बीमारी किन कारणों से होती है?
क्या है कारण?
हेपेटाइटिस वायरस इन्फेक्शन से होने वाली बीमारी है, जो जानलेवा इंफेक्शन होता है। हालांकि ये इंफेक्शन कैसे होता है, ये जानकर आप हेपेटाइटिस से बच सकते हैं।हेपेटाइटिस से ग्रसित होने के कारणों में पहली वजह वायरल इंफेक्शन है, जो निम्न तरीको से शरीर में प्रवेश करता है-
दूषित खाने और दूषित पानी के सेवन से
संक्रमित व्यक्ति का खून चढ़ाने से
असुरक्षित यौन संबंधों से
नशे के इंजेक्शन लगाने पर
टैटू या बॉडी पियरसिंग से
बिना स्टरलाइज की गई निडिल्स से
संक्रमित गर्भवती से उसके बच्चे को
ऑटोइम्यून स्थितियां
इसे नाॅन वायरल हेपेटाइटिस करते हैं, जिसमें शरीर के इम्यून सेल से पता चलता है कि लीवर की सेल्स डैमेज हो रही हैं।
शराब का सेवन
शराब पीने से लीवर पर सीधा असर पड़ता है। अधिक शराब के सेवन से हेपेटाइटिस का खतरा बढ़ सकता है।
दवाइयों के साइड इफेक्ट्स
दवाएं भी हेपेटाइटिस की समस्या होने का एक कारण है। कुछ दवाओं के ज्यादा सेवन करने से लिवर सेल्स में सूजन आ जाती है और हेपेटाइटिस का जोखिम बढ़ जाता है।
बचाव के उपाय
हेपेटाइटिस बी और सी से बचाव और रोकथाम के लिए जरूरी है कि संक्रमण को फैलने से रोकने का प्रयास किया जाए। बच्चों को हेपेटाइटिस के खतरे से बचाने के लिए वैक्सीन दी जाती है। इसके लिए 18 साल के उम्र तक या वयस्कों को 6 से 12 महीने में वैक्सीन के तीन डोज लेने चाहिए। साथ ही खुद को हेपेटाइटिस की समस्या से दूर रखने के लिए इन बातों का ध्यान रखें-
अपने रेजर, टूथब्रश और सुई को दूसरों से शेयर न करें।
ये सुनिश्चित करें कि टैटू बनवाते समय सुरक्षित उपकरणों का उपयोग हो रहा हो।
कान छेदते समय उपकरण इंफेक्शन फ्री हो।
एक बार इस्तेमाल हुई सिरिंज का दोबारा इस्तेमाल न करें।
गर्भावस्था के दौरान मां डॉक्टर की सलाह से पूरा चेकअप कराएं।
अगर हेपेटाइटिस के लक्षण महसूस हो तो सबसे पहले डॉक्टर की सलाह लें। चिकित्सक हेपेटाइटिस की संभावना होने पर चार तरह के टेस्ट कराने की सलाह दे सकते हैं।
पेट का अल्ट्रासाउंड
ऑटोइम्यून ब्लड मार्कर टेस्ट
लिवर फंक्शन टेस्ट
लिवर बायोप्सी
इन टेस्ट के आधार चिकित्सकीय इलाज होता है। अगर एक्यूट हेपेटाइटिस से ग्रसित हैं तो कुछ हफ्तों में ही लक्षण कम होने लगते हैं और मरीज को राहत मिल सकती है। लेकिन अगर क्रॉनिक हेपेटाइटिस हो जाए तो दवाएं लेने की जरूरत होती है। वहीं गंभीर स्थिति में लिवर खराब होने पर लिवर ट्रांसप्लांटेशन कराने की जरूरत भी पड़ सकती है। लीवर में सूजन होने के कारण हेपेटाइटिस रोग होता है। इस वायरल इन्फेक्शन के कारण जान को खतरा भी हो सकता है मतलब हेपेटाइटिस एक जानलेवा इंफेक्शन है। इसके कई कारण हो सकते हैं: वायरल इन्फेक्शन: खासकर, हेपेटाइटिस ए, हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी वायरल इंफेक्शन के कारण होता है। ऑटोइम्यून स्थितियां: अक्सर, शरीर के इम्यून सेल से यह पता चलता है कि लीवर की सेल्स को डैमेज पहुंच रहा है। शराब पीना: अल्कोहल हमारे लीवर द्वारा डायरेक्टली मेटाबोलाइज़्ड होता है, जिसके कारण यह शरीर के दूसरे भागों में भी इसका सर्कुलेशन होने लगता है। इसलिए, जब कोई बहुत अधिक शराब या अल्कोहल का सेवन करता है, तो उस व्यक्ति के लिए हेपेटाइटिस का खतरा बढ़ जाता है। दवाइयों का साइड-इफेक्ट्स: यह भी एक कारण है हेपेटाइटिस का। कुछ विशेष दवाइयों के ज़्यादा सेवन से लीवर सेल्स में सूजन होने लगती है और हेपेटाइटिस का रिस्क बढ़ जाता है।
अक्यूट हेपेटाइटिस कुछ हफ्ते में कम होने लगते हैं और मरीज़ को आराम मिलने लगता है। जबकि, क्रोनिक हेपेटाइटिस के लिए दवाई लेने की ज़रूरत होती है। लीवर खराब हो जाने पर लीवर ट्रांसप्लैनटेशन भी एक विकल्प है।हेपेटाइटिस बी और सी की रोकथाम वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के प्रयाल करने से हो सकता है। इसके अलावा बच्चों को हेपेटाइटिस से सुरक्षित रखने के लिए लिए वैक्सीन्स दी जा सकती हैं। सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेन्शन के अनुसार 18 साल के उम्र तक और उससे वयस्क लोगों को 6-12 महीने में 3 डोज़ दी जानी चाहिए। इस तरह उन्हें ,हेपेटाइटिस से पूर्ण सुरक्षा मिलेगी। साथ ही इन बातों का ख्याल रखें-
अपना रेजर, टूथब्रश और सूई को किसी से शेयर न करें, इससे इन्फेक्शन का खतरा कुछ हद तक कम किया जा सकता है।
टैटू करवाते समय सुरक्षित उपकरणों का इस्तेमाल सुनिश्चित करें ।
कान में छेद करते वक्त इस बात का ध्यान रखें कि उपकरण सुरक्षित और इंफेक्शन-फ्री हैं।