एक समय ऐसा भी था जब संसद में उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ रोने लगे थे! 12 मार्च सन् 2007। भारतीय लोकतंत्र योगी आदित्यनाथ के आंसुओं का गवाह बना था। आज मैं पूछना चाहता हूं कि क्या मैं इस सदन का सदस्य हूं या नहीं, मैंने समाज की सेवा के लिए संन्यास लिया, मैंने अपने परिवार और मां-बाप को छोड़ा। आज राजनीतिक विद्वेष में मेरे साथ ऐसा सलूक किया जा रहा है। क्या सदन मुझे संरक्षण दे पाएगा या नहीं दे पाएगा। आवाज में कंपन और आंखों से आंसुओं के बीच के साथ योगी बोले जा रहे थे। उस समय यूपी की सत्ता मुलायम सिंह यादव के हाथ में थी। समय बदला और आज वही योगी आदित्यनाथ सीएम हैं। और मुलायम के बेटे और खुद सीएम रहे अखिलेश यादव ने रामपुर में चुनावी सभा करते हुए योगी पर किए गए एक अहसान की बात कर दी। अखिलेश ने कहा कि उनके सीएम रहने के दौरान योगी की फाइल भी आई थी लेकिन उन्होंने ऐक्शन लेने से मना कर दिया। अब सवाल है कि उसी अखिलेश के पिता मुलायम के राज में ऐसा क्या हुआ था कि योगी आदित्यनाथ रो पड़े थे।कहावत है कि राजनीति में मुर्दे गाड़े नहीं जाते, बल्कि इन्हें समय-समय पर कब्र से निकालकर जिंदा किया जाता है। बात 15 साल पहले की है। आज उत्तर प्रदेश की सत्ता के शिखर पर बैठे योगी आदित्यनाथ उस समय गोरखपुर से तीन बार सांसद चुने जा चुके थे। संसद में वह फफक कर रो पड़े थे। वह साल 2007 की जनवरी थी, जब सर्द मौसम में गोरखपुर दंगों की आग में जल रहा था। शहर में सांप्रदायिक दंगे हुए थे और दो लोगों की जान चली गई थी। दुकानें फूंकी गई थीं और कई लोगों के घर जला दिए गए थे। गोरखपुर में कई दिनों तक कर्फ्यू लगा दिया गया था।
इसी बीच तत्कालीन स्थानीय सांसद योगी आदित्यनाथ को भी गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया था। यही वो घटना थी, जिसके बाद योगी को जब संसद में बोलने का मौका मिला तो वह भावुक होकर रो पड़े थे। जनवरी 2007 में मोहर्रम जुलूस के दौरान दो पक्षों में बवाल हो गया। एक युवक की मौत के बाद भीड़ उग्र हो गई। पुलिस ने किसी तरह से बीच-बचाव किया लेकिन दूसरे पक्ष का एक युवक भी घायल हो गया, जिसकी बाद में इलाज के दौरान जान चली गई।
मामले की गंभीरता को देखते हुए जिला प्रशासन ने शहर में कर्फ्यू का ऐलान कर दिया था। इसके बावजूद युवक की मौत से आक्रोशित तत्कालीन स्थानीय सांसद योगी आदित्यनाथ अपने समर्थकों के साथ मौके पर पहुंच गए और हिंसक धरना देना शुरू कर दिया। शहर में कर्फ्यू लागू था इसलिए प्रशासन ने योगी आदित्यनाथ को शांति भंग के आरोप में गिरफ्तार कर 15 दिनों के लिए जेल भेज दिया। इस मामले में योगी पर भड़काऊ भाषण देने के भी आरोप लगे। यह भी कहा गया कि योगी ने संप्रदाय विशेष के लोगों के खिलाफ अपने समर्थकों को भड़काया था और कानून तोड़ने की भी बात की थी।
जिलाधिकारी और पुलिस कप्तान शांतिभंग के आरोपी योगी आदित्यनाथ को गोरखनाथ मंदिर परिसर में ही नजरबंद करना चाहते थे लेकिन योगी इस बात पर अड़ गए थे कि अगर उन्हें गिरफ्तार करना है तो उन्हें जेल ले जाया जाए। इसके बाद पुलिस योगी को अपनी गाड़ी में बैठा कर जेल की ओर रवाना हो गई। हालांकि पुलिस के लिए यह इतना आसान नहीं था। पुलिस की गाड़ी जैसे ही मंदिर से निकली तो योगी समर्थकों का विरोध झेलना पड़ा।
कट्टर हिंदुत्व की राजनीति करने वाले योगी की छवि फायरब्रांड हिंदूवादी नेता की थी। वह हिंदू युवा वाहिनी नाम से अपना संगठन बनाकर राजनीति करते थे। प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार के खिलाफ कट्टरपंथियों के मुद्दे को लेकर धरना प्रदर्शन भी किया करते थे। कर्फ्यू के समय जेल में 11 दिन रहने के बाद योगी आदित्यनाथ को रिहा कर दिया गया। इसी दौरान पुलिस-प्रशासन को लेकर उनका दर्द संसद में छलक उठा।
हालांकि इसके बाद यूपी में हुए विधानसभा चुनाव में मुलायम की सत्ता चली गई। मायावती के नेतृत्व में बसपा की सरकार बन गई। अगले साल 2008 में सीएम योगी आदित्यनाथ के साथ अप्रिय घटना होते-होते बची। 7 सितंबर 2008 को योगी आदित्यनाथ आजमगढ़ में आतंकवाद के खिलाफ रैली में बतौर मुख्य अतिथि शामिल होने जा रहे थे, जब काफिले पर जानलेवा हमला हो गया।
आजमगढ़ के मुस्लिम बहुल तकिया मोहल्ले में काफिले के पहुंचते ही चारों तरफ से पत्थर फेंके जाने लगे। इसके बाद पेट्रोल बम से हमला शुरू हो गया। इस हमले की तैयारी काफी पहले से की गई लग रही थी। लेकिन वे अपना टार्गेट नहीं ढूंढ सके क्योंकि हमले से थोड़ी देर पहले ही योगी काफिले के बीच में 7वें नंबर की गाड़ी को छोड़कर आगे की गाड़ी में बैठ गए थे।
रामपुर उपचुनाव में प्रचार के दौरान अखिलेश ने आजम खान के मामले में सरकार पर बदले की भावना से राजनीति करने का आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर हमला बोला है। अखिलेश ने कहा कि उनके सीएम रहते हुए योगी आदित्यनाथ की फाइल भी आई थी। अखिलेश ने कहा कि अधिकारियों ने एफआईआर दर्ज करते हुए कार्यवाही शुरू करने को कहा था लेकिन मैं नहीं मना कर दिया। क्योंकि हम नफरत की राजनीति में विश्वास नहीं करते हैं।’ अखिलेश ने कहा कि इस बात की अधिकारियों से पुष्टि की जा सकती है। लेकिन अब हमें मजबूर ना करें कि जब कभी हम सत्ता में आएं तो उसी तरह की कार्यवाही करनी पड़े।’