अब एनडीए में और भी कई दिग्गज नेता जुड़ने वाले हैं! आगामी लोकसभा चुनाव में अब चंद महीने ही बाकी हैं। ऐसे में सत्ताधारी एनडीए हो या फिर विपक्षी इंडिया अलायंस, दोनों ही खेमा अपनी तरकश के तीरों को सहेजने में जुटे हैं। हालांकि, बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को शिकस्त के लिए एकजुट हुए 15 से ज्यादा पार्टियों का गठबंधन INDIA अब बिखरता नजर आ रहा है। जिस तरह से इस गठबंधन की नींव रखने में अहम योगदान देने वाले नीतीश कुमार इससे अलग हुए उसी से विपक्षी तैयारियों की पूरी पोल खुल गई। नीतीश ही नहीं अब तो जयंत चौधरी की आरएलडी भी एनडीए खेमे में जाती नजर आ रही। विपक्षी गठबंधन में जहां टूट दिख रही तो उधर बीजेपी नेतृत्व लगातार अपना कुनबा बढ़ाने पर जोर दे रहा। इसकी अहम वजह है कि पार्टी नेतृत्व का आगामी चुनाव को लेकर सेट किया गया टारगेट। पीएम मोदी ने लोकसभा में अपने संबोधन के दौरान बीजेपी के लिए 370 तो एनडीए के लिए 400 पार का टारगेट सेट किया है। इसे पाने के लिए पार्टी कोई कमी नहीं छोड़ना चाहती। शायद यही अप्रोच बीजेपी और एनडीए को मजबूती प्रदान करता दिख रहा है। इंडिया गठबंधन में टूट की कहानी तभी से शुरू हो गई जब कांग्रेस को तीन राज्यों एमपी, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में करारी शिकस्त मिली। इसी के बाद पहले ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में कांग्रेस को आंखें दिखाना शुरू किया। सीट शेयरिंग तो दूर दीदी ने दो टूक कह दिया उनकी पार्टी टीएमसी अकेले लोकसभा चुनाव में उतरेगी। इसके बाद इंडिया गठबंधन को लेकर जोर-शोर से जुटे नीतीश कुमार बिहार में लालू की पार्टी आरजेडी के महागठबंधन से अलग हो गए। उन्होंने एनडीए का साथ पकड़ लिया।
खेला बंगाल और बिहार में ही नहीं हुआ। यूपी में भी इंडिया अलायंस की तैयारियों को जोर का झटका लगता दिख रहा है। अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के साथ नजर आने वाले जयंत चौधरी की आरएलडी अब एनडीए का रुख करती दिख रही। ऐसी चर्चा है कि जल्द ही सीट बंटवारे की डील फाइनल होते ही जयंत भी एनडीए में चले जाएंगे। मायावती पहले ही अकेले लोकसभा चुनाव में उतरने का ऐलान कर चुकी हैं। इस तरह से इंडिया अलायंस में बिखराव जारी है।
लोकसभा चुनाव से पहले जिस तरह से विपक्षी एकता का जिक्र शुरू हुआ उसकी पोल धीरे-धीरे खुलती चली गई। क्षेत्रीय पार्टियों ने कहीं न कहीं कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार करने से इनकार कर दिया। सीट शेयरिंग की चर्चा शुरू होती उससे पहले ही गठबंधन में टकराव बढ़ने लगा। अब स्थिति ये हो गई कि इंडिया अलायंस में शामिल दल ही इससे कटना शुरू हो गए हैं। इसके लिए कहीं न कहीं कांग्रेस को ही जिम्मेदार माना जा रहा। इस बात की जिक्र नीतीश कुमार ने भी किया था। नीतीश कुमार को लेकर चर्चा थी कि उन्हें संयोजक बनाया जा सकता है। हालांकि, कांग्रेस ने इस पर ग्रीन सिग्नल नहीं दिया। उन्होंने मल्लिकार्जुन खरगे का नाम आगे बढ़ाया। बस इसी से नीतीश का मन खट्टा हो गया। इसी तरह से ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल और उधर जयंत चौधरी भी अलग राह लेने को मजबूर होते नजर आए।
अब बात करें बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए की तो यहां स्थिति बिल्कुल अलग है। अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के बाद जिस तरह का माहौल देश में नजर आ रहा। उससे बीजेपी काफी एक्टिव दिख रही। उसे लग रहा माहौल उनके हक में है। बावजूद इसके पार्टी कोई कमी नहीं छोड़ना चाहती। यही वजह है कि बीजेपी लगातार नए-नए साथियों को अपने खेमे में लेकर आ रही है। नीतीश कुमार के बाद अब चर्चा है कि आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी भी बीजेपी के साथ आ सकती है। बीजेपी के कुनबा बढ़ाने के पीछे है पार्टी का टारगेट 400 पार का है।
बीजेपी की तैयारी महाराष्ट्र को लेकर भी कुछ अलग है। चर्चा है कि राज ठाकरे की पार्टी एमएनएस भी एनडीए में आ सकती है। इसके साथ ही बीजेपी नेतृत्व दक्षिण के राज्यों तमिलनाडु में भी नए-नए गठबंधन की प्लानिंग कर रही। पार्टी नेतृत्व को ये अंदाजा है कि हिंदी भाषी राज्यों में उन्हें बड़ी जीत तो मिल सकती है। हालांकि, 370 का टारगेट पाने के लिए उन राज्यों में भी बीजेपी को अच्छा प्रदर्शन करना होगा जहां उनकी स्थिति कमजोर है। यही वजह है कि पार्टी अपने साथ नए दोस्तों को जोड़ने से पीछे नहीं हट रही। बीजेपी नेतृत्व को भी लग रहा कि इस चुनाव में उनके पास ये टारगेट हासिल करने का अच्छा मौका है। ऐसे में वो कोई कोर-कसर छोड़ने के मूड में नहीं है।
बीजेपी नेतृत्व की चाह यही है कि वो किसी भी कीमत पर पीएम मोदी के 400 पार के टारगेट को हासिल करना चाहते हैं। पार्टी को आगामी चुनाव में अपनी जीत का भरोसा तो है लेकिन वो इससे कहीं आगे प्लानिंग कर रहे। यही वजह है कि पीएम मोदी लगातार कांग्रेस नेतृत्व को घेर रहे। बुधवार को राज्यसभा में पीएम मोदी ने एक बार फिर कांग्रेस नेतृत्व पर करारा अटैक किया। प्रधानमंत्री ने दो टूक कहा कि ‘इनका हाथ जहां भी लगता है, उसका डूबना तय। कांग्रेस के पास अपने ही नेताओं की गारंटी और नीतियां नहीं हैं लेकिन वह मोदी की गारंटियों पर सवाल उठा रही।’