Tuesday, May 21, 2024
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आखिर दुबई में कैसे आई तूफानी बाढ़?

हाल ही में दुबई में तूफानी बाढ़ देखने को मिली! दुबई समेत UAE के कई इलाकों में इस हफ्ते हुई भारी बारिश से आम जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। कई जगह बाढ़ जैसे हालात हो गए। व्यस्त दुबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा भी जलमग्न हो गया, जिसके कारण कई फ्लाइट्स रद्द करनी पड़ीं। अचानक बारिश और उसके बाद आई बाढ़ के हालात से उबरने की कोशिश यहां के लोग कर रहे हैं। जिस तरह से संयुक्त अरब अमीरात के कई इलाकों में जोरदार बारिश हुई उसे लेकर लोगों ने आश्चर्य जताया। उन्होंने आशंका जताई कि क्या यह क्लाउड सीडिंग (बारिश कराने के लिए मौसम परिवर्तन की तकनीक को क्लाउड सीडिंग कहते हैं) थी। जिसके कारण दुबई में बाढ़ आई। ऐसे प्रोजेक्ट में शामिल भारतीय वैज्ञानिकों ने स्पष्ट रूप से यूएई में हुई बारिश के क्लाउड सीडिंग से किसी भी संबंध को खारिज किया है। मौसम वैज्ञानिकों और जलवायु विज्ञानियों ने इस रिकॉर्ड वर्षा के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहराया है। ऐसा माना जाता है कि सूखे से जूझ रहा यूएई अपने घटते भूजल स्तर को बढ़ाने के लिए समय-समय पर क्लाउड सीडिंग करता है, इसलिए सोमवार रात और मंगलवार शाम के बीच हुई अत्यधिक बारिश ने क्लाउड सीडिंग प्रक्रिया पर सवाल खड़े कर दिए। देश में 24 घंटे से भी कम समय में रिकॉर्ड 255 मिमी बारिश हुई, जिससे दुबई में बाढ़ आ गई। वहीं पड़ोसी देशों कतर, ओमान, बहरीन और सऊदी अरब में भी भारी बारिश हुई, लेकिन संयुक्त अरब अमीरात के दुबई में इसका सबसे अधिक असर पड़ा।

भारत में क्लाउड सीडिंग प्रोजेक्ट से जुड़े आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर सच्चिदानंद त्रिपाठी ने कहा कि क्लाउड सीडिंग और दुबई में आई बाढ़ के बीच कोई संबंध नहीं है। सच्चिदानंद त्रिपाठी ने हमारे सहयोगी अखबार टीओआई से बात करते हुए कहा कि तूफान के विकास के शुरुआती फेज में सीडिंग की कोशिश की जाती है। इस मामले में जब सिस्टम ओमान की खाड़ी से आगे बढ़ा तो यह पहले से ही एक तेज तूफान था। ऐसे सिस्टम को सीड करना बेहद असंभव और असुरक्षित है। सीडिंग से अधिकतम 25 फीसदी बारिश में वृद्धि हो सकती है। इस मामले में कुल बारिश 25 सेमी थी, इसलिए बिना सीडिंग के भी 20 सेमी बारिश हुई होगी।

जाने-माने जलवायु वैज्ञानिक और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पूर्व सचिव माधवन राजीवन ने भी ऐसे किसी भी संबंध की संभावना को खारिज किया। उन्होंने कहा कि क्लाउड सीडिंग से इतनी भारी बारिश और बाढ़ नहीं आ सकती। संभावित कारणों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह जलवायु परिवर्तन का बिल्कुल स्पष्ट संकेत है। ये भारी तूफान था जो खाड़ी क्षेत्र में एक्टिव एक सिनॉप्टिक सिस्टम के कारण आया। ग्लोबल वार्मिंग के साथ यह प्रवृत्ति है कि अगर बारिश होती है, तो बहुत भारी बारिश होती है। हमें दुनिया के किसी भी हिस्से में और किसी भी समय इस तरह की घटनाओं के बारे में जानकारी की उम्मीद रखनी चाहिए।

भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के पूर्व प्रमुख केजे रमेश का भी मानना है कि बादल छाए रहना भारी बारिश का मुख्य कारण नहीं है। उन्होंने कहा कि पश्चिमी विक्षोभ के कारण होने वाली अत्यधिक बारिश की घटनाएं इस क्षेत्र में बाढ़ का मुख्य कारण हैं। जलवायु परिवर्तन के साथ इसके संबंध पर उन्होंने कहा कि यह सभी लोग जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन ग्लोबल वार्मिंग के तहत कोई भी बारिश कराने वाला सिस्टम अधिक मजबूत होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि जलवायु परिवर्तन की वजह से वायुमंडल में बादल अतिरिक्त नमी धारण कर लेते हैं और भारी होते जाते हैं। इसी से बारिश कराने वाले सिस्टम की तीव्रता बढ़ जाती है। मौसम की घटनाओं के बारे में विस्तार से बताते हुए केजे रमेश ने कहा कि अरब सागर से अतिरिक्त नमी के कारण पश्चिमी लहरों का दक्षिण की ओर विस्तार हुआ। इसी के चलते मौसम में बदलाव हुआ। इसी वजह से न केवल संयुक्त अरब अमीरात बल्कि ओमान, उत्तरी सऊदी अरब, बहरीन, कतर में भी भारी बारिश हुई। इससे पहले, इसी प्रकार के वेस्टर्न डिस्टर्बेंस की वजह से अफगानिस्तान में दो दिनों तक भारी वर्षा हुई थी। जिसके चलते पाकिस्तान में बाढ़, तूफान और बिजली गिरने की घटनाएं हुईं थीं।

यूएई के क्लाउड सीडिंग प्रोजेक्ट के बारे में रमेश ने बताया कि इस देश ने 2002 में अपने बारिश बढ़ाने वाले प्रयोग शुरू किए थे। इसमें वो आस-पास के क्षेत्रों में बारिश करने वाली मौसम प्रणाली विकसित होने पर विमान आधारित क्लाउड सीडिंग करने की कोशिश की। ऐसे प्रयासों के माध्यम से, क्लाउड सीडिंग टीम बारिश को प्राकृतिक रूप से होने वाली बरसात से 15 फीसदी अधिक बढ़ाने में सक्षम थे।

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